सुशील उपाध्याय
सामान्य तौर पर ‘बाबा’ एक आदरसूचक शब्द है, जिसका प्रयोग विविध रूपों में देखने को मिलता है। इन दिनों इस शब्द को स्वामी रामदेव के विरोधियों ने खूब चर्चित किया है। वे नहीं चाहते कि बाबा जैसा शब्द स्वामी रामदेव के नाम के साथ जुड़े क्योंकि इस शब्द में पीढ़ियों के रिश्तों के साथ जुड़ा सम्मान, प्रेम और आस्था का स्रोत गुम्फित है। हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान के बहुत बड़े इलाके में पिता के पिता यानी पितामह को बाबा (दादा का पर्याय) कहा जाता है।
यदि उत्तराखंड की बात करें तो गढ़वाल के कुछ हिस्सों में, जौनसार में और कुमाऊं के कुछ स्थानों पर पिता के लिए बाबा शब्द प्रयुक्त होता है। बंगाल में भी कुछ जगहों पर बाबा शब्द पिता का पर्याय है। जैसा कि सामान्य तौर पर सभी भाषाओं में होता है इसलिए स्थान के साथ भी इस शब्द का भाव-अर्थ बदलता है। राजस्थान के कुछ हिस्सों में बाबा शब्द पिता के बड़े भाई यानी ताऊ के लिए प्रयोग किया जाता है।
यह बात अलग है कि अंग्रेजी मिजाज के लोग इस शब्द को अपने सुंदर-सलोने बच्चों के साथ जोड़ देते हैं। जैसे कि संजय दत्त बचपन से बुढ़ापे की तरफ आ गए, लेकिन अब भी ‘संजू बाबा’ ही है। (कुछ चतुर लोग यहां राहुल बाबा को भी नत्थी कर देंगे।) इसी तरह से नए-नए मां-बाप बनने वाले युवा भी अपने बच्चे के लिए ‘बाबा सूट’ खरीदने जाते हैं। यदा-कदा स्नेह के साथ भी छोटे बच्चों को बाबा कहकर बुलाया जाता है।
इस शब्द को किसी व्यक्ति की वृद्धावस्था, उसके ज्ञान और आध्यात्मिक वैभव के साथ भी जोड़ा जाता है। सामान्य तौर पर साधू-संन्यासियों को बाबा कह दिया जाता है। हालांकि, बाबा कोई आधिकारिक आध्यात्मिक पदवी नहीं है जैसे कि संन्यासियों की पदवियां होती हैं। कुछ इलाकों में भिक्षा मांगने वाले, गैरिक कपड़े पहनने वाले लोगों को भी बाबा कहकर बुलाया जाता है, जैसे जोगी बाबा, नागा बाबा, अवधूत बाबा, ब्रह्मचारी बाबा, कनफड़ा बाबा आदि। पहाड़ में जोगी जाति के लिए भी बाबा शब्द प्रयोग में मिलता है।
बाबा का एक सामाजिक संदर्भ भी है। हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में प्रायः सभी गांवों में एक-दो परिवार ऐसे होते हैं, जिनके सामाजिक रिश्ते को एक पीढ़ी आगे माना जाता है। इन्हें गांव के संरक्षक के रूप में ‘बाबा का परिवार’ या ‘दादी का परिवार’ भी कह दिया जाता है। कुछ मामलों में अपना काम निकलवाने के लिए भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता हैं। जैसे, ‘मेरा ये काम कर दो बाबा’ या ‘अल्लाह के नाम पर कुछ दे दो बाबा’। यहां मांगने वाला व्यक्ति जिससे अपेक्षा रख रहा है, उसके कद को खुद से बड़ा प्रदर्शित कर रहा है।
इस शब्द को जब डॉक्टर अंबेडकर के साथ जोड़ कर देखते हैं तो यह किसी न किसी स्तर पर दलित चेतना के साथ जुड़ जाता है और इसका भाव-अर्थ एक पूरे समुदाय के संरक्षक के रूप में सामने आता है। यही स्थिति किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के साथ भी है। ज्यादातर किसान, विशेष रूप से जाट किसान उन्हें बाबा टिकैत कहकर संबोधित करते रहे हैं। यहां ताऊ पहले ही मौजूद है, चौधरी देवीलाल के रूप में।
यदि सिख धर्म के संदर्भ में देखें तो बाबा शब्द बहुत ऊंचा शब्द है। वहां गुरु नानक देव जी महाराज और अन्य गुरु महाराजों के साथ सम्मान रूप में इस शब्द को जोड़कर प्रयोग किया जाता है। पंजाबी में इस शब्द को बाबा की बजाय बाबे की तरह भी प्रयुक्त होता देख सकते हैं। जैसे, बाबे की किरपा (कृपा)। सिख धर्म की तरह मुसलमानों में भी इस शब्द को काफी इज्जत के साथ प्रयोग में लाया जाता है। इसीलिए हजरत आदम को बाबा-ए-आदम कहा गया और इतिहास बदलने वाला नायक बाबा-ए-कौम कहलाता है।
कुछ स्थानों पर इसे किसी भी बुजुर्ग व्यक्ति और पंडित-पुरोहित के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। इस बारे में मेरे फ़ेसबुक मित्र आशीष त्रिपाठी ने लिखा,
“ब्राह्मणों को भी बाबा कहते हैं। इसलिए पूर्वांचल में अब भी आम लोग ब्राह्मणों को उनकी उम्र देखे बिना ही, बाबा पाय लागी, कहकर सम्मान प्रदर्शित करते हैं। मनुस्मृति में एक श्लोक है, जिसमें बटुक को वृद्ध ब्राह्मणेतर का पितामहतुल्य बताया गया है। वहां उद्धरण भी दिया है, ॠषि अंगिरा का। अंगिरा ने अपने चाचाओं को शास्त्र शिक्षा दी थी। वहां ज्ञान को सम्मान का मापक बताया गया। आज भी यह बात हिंदी पट्टी में यह प्रचलित है। साहित्यिक जगत में कुछ लोग राहुल सांकृत्यायन, रामविलास शर्मा, नागार्जुन आदि को भी बाबा कह देते हैं। यह शब्द किसी न किसी स्तर पर जवानी के अंत का भी सूचक है। इसलिए कुछ लोगों को बड़ी उपेक्षा और तिरस्कार के साथ बाबा पुकारा जाता है। महाकवि केशवदास जैसे रसिकों का तो इस शब्द से दिल ही टूट जाता है-
‘चंद्रवदनि मृगनैननि बाबा कहि कहि जाय!”
कुछ सन्दर्भों में यह शब्द प्रयोक्ता की भावना के साथ भी जुड़ा है। इसलिए ढोंगी, भिखारी, फक्कड़ आदि के लिए भी बाबा शब्द प्रयोग में सुनाई दे सकता है। हिंदी पट्टी में बाबा शब्द को बच्चों को डराने के लिए भी इस्तेमाल में लाया जाता रहा है। जैसे, बाहर मत जाओ बाबा उठा ले जाएगा। इस वाक्य के संदर्भ में देखें तो जब कोई बच्चा बाबा शब्द का अर्थ ग्रहण करेगा तब उसके दिमाग में किसी उठाईगीर और असामाजिक व्यक्ति का चित्र बनेगा। ऐसे ही नकारात्मक उदाहरण और भी हैं, जैसे अफीमची बाबा, चिलमची बाबा, गंजेड़ी बाबा, नशेड़ी बाबा। मीडिया ने तो इस शब्द को इतना जमीन में गाड़ दिया कि राम रहीम, रामपाल, आसाराम जैसों के साथ जोड़कर अब बलात्कारी बाबा भी देखने, पढ़ने को मिलता है।
इस शब्द को दो हिस्सों में बांट कर देखें तो ‘बा’ का अर्थ गुजराती में मां होता है। जैसे गांधी बापू की पत्नी कस्तूर हम सब के लिए कस्तूर बा हैं। ऐसे सांस्कृतिक उदाहरण बताते हैं कि भाषा में भी ‘बाबा’ की हैसियत ‘बा’ से दोगुनी है! जहां तक ध्वनियों का सवाल है तो बाबा (बा-बा या बां-बां) की ध्वनि भेड़ बकरियों के लिए इस्तेमाल की जाती है।
इस शब्द के संदर्भ में फ़ेसबुक मित्र दयाशंकर राय लिखते हैं, “पूर्वांचल में बाबा सामान्यतः दादा का ही पर्याय है। हालांकि दादा भी अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग अर्थों में प्रयुक्त होता है। कई शहरी क्षेत्रों में यह बड़े भाई के लिए भी प्रयोग किया जाता है। कुछ ग्रामीण इलाकों में दादा का अपभ्रंश दद्दा भी इसी रूप में बोला जाता है तो कुछ जगह पिता के लिए भी। दादा का एक प्रयोग गुंडे , बदमाश के लिए भी होता है और शायद दादागीरी इसी से बना है। लेकिन गांवों में बाबा साधु-संन्यासी के अर्थ में भी प्रयोग में लाया जाता है। कुछ शहरी क्षेत्रों में बाबा बच्चों के लिए प्रयुक्त होता है। बाबा का एक और आश्चर्य प्रकट करने के लिए होता है। बाबा रे बाबा!”
वास्तव में इस शब्द की रेंज बहुत बड़ी है। एक तरफ जहां भगवान शिव भी बाबा हैं, वहीं घर के भीतर खेलने वाला छोटा बच्चा भी ‘म्यार बाबा’ या ‘मेरा बाबा’ है। हमउम्र लोगों के बीच तो दोस्त और यार शब्द का पर्याय बाबा बन जाता है। वैसे, बाबा ऐसे व्यक्ति को भी कहा जाता है जो हर प्रकार के दोष से मुक्त हो, भावना में पवित्र हो और उच्च दर्जे का ज्ञानी हो। शायद इसीलिए हमारे पूर्वजों ने अपने पिता के पिता को बाबा कहना शुरू किया क्योंकि हमारे आसपास शायद ही उनसे ज्यादा समर्थ, योग्य और प्यार करने वाला व्यक्ति मौजूद हो। पर, रोचक बात यह है कि जैसे दादा का स्त्रीलिंग दादी है, वैसे बाबा का स्त्रीलिंग बाबी नहीं बनता। बल्कि पंजाबी में बेबे और हरियाणवी-कौरवी में बोबो के रूप में सामने आता है। (बोबो भी एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है। मां, दादी, बहन, इन सभी के लिए प्रयोग कर लिया जाता है।) भाषा पर गहरी पकड़ रखने वाले विद्वान लोग बता सकते हैं कि क्या बाबा का संबंध बाबू से भी है या यह देशज रूप में ही प्रचलन में आया है! (साहित्यकार हरपाल सिंह अरुष का मत है ,कि ‘बाबू शब्द उन लोगों को संबोधित करने के लिए बना था जो अंग्रेजी काल में कार्यालयों में क्लर्क के पद पर काम करते थे। उनके अंग्रेज बॉस उनको बबून (बंदर की एक प्रजाति) कहकर संबोधित करते थे। उनका उच्चारण भारतीयों को ‘बाबू’ जैसा सुनाई देता था। बाद में क्लर्क के लिए बाबू शब्द प्रचलित हो गया।)
बाबा शब्द आश्चर्यजनक संबोधन का भी हिस्सा है। जैसे किसी अपघटित अथवा अनहोनी बात को देखकर अनायास मुंह से निकलता है, अरे बाबा! लेकिन यही बात जब दुखद की बजाय सुखद हो तो फिल्मी डायलॉग की तरह सुन सकते हैं, उड़ी बाबा! अब इस चर्चा के बाद आप स्वतंत्र कर सकते हैं कि स्वामी रामदेव आपके लिए बाबा रामदेव हैं अथवा केवल रामदेव हैं।
(यह लेख सहकारी-लेखन का एक नमूना है। मेरी एक फ़ेसबुक पोस्ट पर ‘बाबा’ शब्द पर 70 मित्रों ने कमेंट किए। यह उन सभी टिप्पणियों का सार संकलन है। इसी क्रम में दो मित्रों की विशिष्ट टिप्पणियों का लेख में उल्लेख भी किया गया)
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