ऋषिकेश: श्री श्री जगद्गुरू शंकराचार्य महासंस्थानम् शारदापीठम् श्रृगेंरी से सम्बंधित मैसूर मठ आचार्य श्री शंकरभारती स्वामी जी परमार्थ निकेतन पधारे। परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों को आद्यशंकराचार्य रचित ‘सौंदर्य लहरी’ स्तोत्र का विविधवत् प्रशिक्षण दिये जाने हेतु विस्तृत चर्चा हुई। स्वामी जी ने बताया कि ऋषिकुमारों को प्रशिक्षित करने के पश्चात वे अन्य को भी प्रशिक्षित करेंगे ताकि आद्यशंकराचार्य रचित ‘सौंदर्य लहरी’ स्तोत्र को जन-जन तक प्रसारित किया जा सके।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि जगद्गुरू शंकराचार्य जी ने छोटी से उम्र में समाज को एकता और अखंडता के सूत्र में पिरोने हेतु पैदल भारत भ्रमण कर चार पीठों की स्थापना की। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, दक्षिण से उत्तर तक, पूर्व से पश्चिम तक पूरे भारत का भ्रमण कर एकता का संदेश दिया वह भी उस समय जब कम्यूनिकेशन (संवाद) और यातायात के कोई साधन नहीं थे। उन्होने कहा कि एकरूपता हमारे भोजन में, हमारी पोशाक में भले ही न हो परन्तु हमारे बीच एकता जरूर होय एकरूपता हमारे भावों में हो, विचारों में हो ताकि हम सभी मिलकर रहें। आज भी ये चारों धाम राष्ट्रीय एकता के प्रतीक हैं। वर्तमान समय में भी राष्ट्र को ऐसे ही महापुरूषों की जरूरत है जो पूरे समाज को एकता के सूत्र से जोड़ सकें। जगद्गुरू शंकराचार्य जी द्वारा रचित वेदान्त दर्शन समाज के उत्थान में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि शंकराचार्य जी ने वेदान्त और अद्वैत के ऐसे दिव्य सूत्र दिये जिसने भारत ही नहीं पूरे विश्व को एक नई दिशा दी। आदिगुरू शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित ज्योतिर्मठ, श्रृगेंरी शारदा पीठ, द्वारिका पीठ, गोवर्धन पीठ, भारतीय हिन्दू दर्शन के गूढ़ रहस्यों का संदेश देते हैं। ये मठ सेवा, साधना और साहित्य का अद्भुत संगम हैं।
आदिगुरू शंकराचार्य जी ने ब्रह्म वाक्य ’’ब्रह्म ही सत्य है और जगत माया’’ दिया। साथ ही सुप्रसिद्ध ग्रंथ ’ब्रह्मसूत्र’ का भाष्य किया, ग्यारह उपनिषदों तथा गीता पर भाष्य किया। शंकराचार्य जी ने वैदिक धर्म और दर्शन को पुनः प्रतिष्ठित करने हेतु अथक प्रयास किये। उन्होने तमाम विविधताओं से युक्त भारत को एक करने में अहम भूमिका निभायी। संस्कृत में संवाद कर उन्होने संस्कृत भाषा को समाज के सभी वर्गों से जोड़ा। आदिगुरू शंकराचार्य जी को अद्वैत और वेदान्त के सूत्र दिये। ’’अहं ब्रह्मास्मि’’ अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और सर्वत्र हूँ इस प्रकार प्रकृति की रक्षा का संदेश दिया और इस अवधारणा को पूरे विश्व में सम्मान मिला है। चाहे बात एकता की हो या एकरूपता की हो या परमात्म सत्ता से एकता की बात हो उन सब के लिये वेदान्त दर्शन में महत्वपूर्ण सूत्र समाहित हैं। स्वामी जी ने ऋषिकुमारों को परम तपस्वी, वीतराग, परिव्राजक, श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ सनातन धर्म के मूर्धन्य आदिगुरू शंकराचार्य जी द्वारा रचित ’सौंदर्य लहरी’ को आत्मसात करने तथा जनमानस तक पहंुचाने का संकल्प कराया। श्री श्री जगद्गुरू शंकराचार्य महासंस्थानम् शारदापीठम् श्रृगेंरी से सम्बंधित मैसूर मठ से आये आचार्य शंकरभारती स्वामी जी, (यड़तोरे श्री योगानन्देश्वर सरस्वती मठ) को रूद्राक्ष का पौधा देकर विदा किया।
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