हरिद्वार,(Amit kumar): शनिवार को आषाढी गुरूपूर्णिमा के पावन पर्व पर श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े के अन्र्तराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरिगरि महाराज के सानिध्य में नागा सन्यासियों ने अखाड़े के आराध्य गुरू दत्तात्रेय भगवान की विशेष पूजा अर्चना कर भोग लगाया। अखाड़े के संतो,नागा सन्यासियों ने भी अपने अपने गुरूजनों की पूजा अर्चना आर्शीवाद प्राप्त किया।श्रीमहंत हरिगिरि महाराज के दीक्षित शिष्यों,गृहस्थ शिष्यों,अनुयायियों तथा अन्य श्रद्वालु भक्तों ने श्री महाराज की पूजा अर्चना की तथा उनके श्रीचरणों में पुष्प अर्पित किए। इस दौरान किन्नर अखाड़े की महामण्डलेश्वर भवानी शंकर गिरि भी विशेष रूप से जूना अखाड़े पहुचकर अपने गुरू श्रीमहंत हरिगिरि महाराज की पूजा अर्चना की। इस अवसर पर श्रीमहंत हरिगिरि महाराज ने कहा कि गुरू पूर्णिमा पर्व गुरू अपना पूरा जीवन अपने शिष्य को योग्य बनाने में लगा देते है। योग्य शिष्य का कर्तव्य तभी पूर्ण होता है जब वह गुरू दक्षिणा भेंट करता है,लेकिन गुरू दक्षिणा का अर्थ धन,द्रव्य या उपहार नही है,अपितु अपने समस्त अहंकार,घमंड,ज्ञान,अज्ञान पद,शक्ति व अभिमान गुरू के चरणों में अर्पित कर दे। उन्होने कहा सक्षम व सिद्व गुरू अपने शिष्य को स्वयं पहचान लेते है। जिस प्रकार चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को,समर्थगुरू रामदास ने छत्रपति शिवाजी को रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को शिष्य बनाया था,उसी प्रकार योग्य शिष्य का चयन गुरू स्वयं ही कर लेते है। श्रीमहंत हरिगिरि महाराज ने आषाढ मास की गुरू पूर्णिमा का विशेष महत्व है। यह पूर्णिमा सबसे बड़ी होने के साथ साथ चद्र की कल व ग्रह नक्षत्रों के विशिष्ट संयोग लिए होता है। इसके अतिरिक्त यह अवंतिका में अष्ट महाभैरव की पूजन परम्परा से भी जुड़ी है। इसलिए इस दिन गुरू पद चरण वंदना का विशेष महत्व है। जूना अखाड़े में गुरू पूर्णिमा पर्व पर भी आनंद भैरव मन्दिर,आद्य शक्ति मायादेवी मन्दिर में भी विशेष श्रृंगार व पूजा अर्चना की गयी। इस अवसर पर अन्र्तराष्ट्रीय सचिव श्रीमहंत मोहन भारती,श्रीमहंत महेश पुरी,कोठारी श्री महंत संध्या गिरि,थानापति राजेन्द्र गिरि,थानापति महरव्यास गिरि,महंत रणधीर गिरि,पुजारी सुरेशानंद पुरी,श्रीमहंत चन्दन पाण्डे,े गोविंद सोलंकी,सहित भारी संख्या में भक्त तथा श्रद्वालु उपस्थित थे।
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