देहरादून: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के वैज्ञानिकों ने आलू के पत्तों की तस्वीर से फसल में रोग का पता लगानेकेलिए स्वचालित कम्प्युटेशनल मॉडल का विकास किया है। डॉ. श्रीकांत श्रीनिवासन, एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ कम्प्युटिंग एवं इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी के मार्गदशन में केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला के सहयोग से जारी शोध में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक से पत्तों के रोगग्रस्त हिस्सों कापता लगाया जाता है।
शोध का वित्तीयन जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार ने किया है। हाल में इसके परिणामों का प्रकाशन प्लांट फीनोमिक्स नामक जर्नल में किया गया। शोध के सहभागीदारी हैं डॉ. श्रीकांत श्रीनिवासन और डॉ. श्याम के. मसकपल्ली के साथ शोध विद्वान आईआईटी मंडी के जो जॉनसन और गीतांजलि शर्मा; और केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला के डॉ. विजय कुमार दुआ, डॉ. संजीव शर्मा, और डॉ जगदेव शर्मा। आलू दुनिया के इतिहास में दुनिया के सबसे बड़े अकाल (मध्य उन्नीसवीं सदी) का कारण रहा है जिसमंे आयरलैंड के दस लाख से अधिक लोग मर गए और यह आयरिश भाषा के लिए मौत की घंटी बन गई। और इसकी मुख्य वजह थी आलू की बीमारी‘ब्लाइट’। आलू की फसल की एक आम बीमारी है ब्लाइट जो पत्ते के सिरे और किनारों पर असमान हल्के हरे जख़्म के रूप में शुरू होती है और फैल कर बड़े भूरे से लेकर बैंगनी-काले ‘नेक्रोटिक पैच’ का रूप लेती है। इसके परिणामस्वरूप अंततः पौधे सड़ने लगते हैं। यदि इसका पता नहीं चला और रोकथाम नहीं की गई तो रोग के लिए अनुकूल परिस्थितियों में एक सप्ताह के अंदर यह पूरी फसल बरबाद कर देगी।‘‘अधिकतर विकासशील देशों की तरह भारत में भी ब्लाइट का पता लगाने और पहचान करने का काम इसके लिए प्रशिक्षित लोग मैन्युअली करते हैं।वे खेत का दौराकरते और आलू के पत्तों का नजदीक सेमुआयना करते हैं,‘‘ डॉ. श्रीनिवासन ने बताया। जाहिर है यह प्रक्रिया थकाऊ और अक्सर अव्यावहारिक भी है खास कर दूर-दराज के क्षेत्रों में जहां आलू की खेती के ऐसे विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं होते हैं। ‘‘इसलिए रोग का पता लगाने की स्वचालित प्रक्रिया बहुत सहायक हो सकती है और देश के कोने-कोने में मोबाइल फोन पहंुचने के साथ इस काम में स्मार्टफोन बहुत उपयोगी साबित हो सकता है,‘‘ शोध के व्यावहारिक उपयोग पर प्रकाश डालते हुए। जो जॉनसन, रिसर्च स्कॉलर, आईआईटी मंडी ने कहा।
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