window.dataLayer = window.dataLayer || []; function gtag(){dataLayer.push(arguments);} gtag('js', new Date()); gtag('config', 'UA-96526631-1'); दुःख को स्वीकार करने में ही जीवन का वास्तिविक सुख-पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज | T-Bharat
November 19, 2024

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दुःख को स्वीकार करने में ही जीवन का वास्तिविक सुख-पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज

अवसाद और अनिश्चितता से आनन्द की ओर

अवसाद और अनिश्चितता से आनन्द की ओर

ऋषिकेश,(Amit kumar): परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि पूरे विश्व के लिये विगत 1 वर्ष से अधिक का समय अनिश्चिता, भय, पीड़ा और अवसाद से भरा रहा आगे भी कोरोना वायरस की तीसरी लहर को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। ऐसे में सबसे जरूरी है हम सब खुश कैसे रहे? इस समय कहां से खुशी आये और कैसे जीवन में आनन्द आये। इसके लिये भारतीय दर्शन में बड़े ही सुन्दर सूत्र दिये हैं जिससे प्रत्येक परिस्थिति में हम खुशियों का आनंद ले सकते हैं। देखा जाये तो दुःख और पीड़ा को सहन करने की कला ही हमें सुख का अनुभव कराती है। जब हम अपनी प्रत्येक स्थिति को और अपने दुखों को स्वीकार कर गले लगा लेते हैं तो हमारी पीड़ा कम हो जाती है। यह समय तो पीड़ा को प्रेरणा और करूणा में बदलने का है।
पूज्य स्वामी जी ने कहा कि जिस प्रकार अन्धेरा और प्रकाश जुड़वा सन्तानों की तरह हैं उसी प्रकार सुख और दुःख भी हमारे जीवन की जुड़वा सन्तानें ही तो हैं। वैसे तो जीवन में आने वाली प्रत्येक स्थिति को सहर्ष स्वीकार कर लेना बहुत कठिन है परन्तु ऐसा करने के पश्चात न सुख बचता है और न दुःख तब जीवन में एक सम स्थिति आ जाती है वही जीवन का आनन्द है। अक्सर हम जीवन भर खुशियों का पीछा करते रहते हैं और दुःखों से भागते रहते हैं जिससे जीवन में विरोध उत्पन्न होता है और वह विरोध ही पीड़ा का प्रमुख कारण है। अगर हम प्रत्येक परिस्थिति को साक्षी भाव से देखने लगे तथा अपने दुखों का सामना करने में सक्षम हो गये तो हम सच्चे सुख को प्राप्त कर सकते हैं।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि हमारी विद्यालय और हमारी शिक्षण पद्धति हमारे युवाओं को; छात्रों को पीड़ा और विपरीत परिस्थितियों से निपटने की कला नहीं सिखाती, जिससे युवाओं में अवसाद की समस्यायें बढ़ती जा रही हैं। वास्तविकता तो यह है कि जितना अधिक हम दुख के बारे में जानेंगे और सीखेंगे जीवन में उतनी ही कम पीड़ा होगी।
दूसरी बात जीवन के प्रति जागरूक होना और ध्यान (मेडिटेशन) करना बहुत जरूरी है। ध्यान से, हम अपने और दूसरों के भी दुखों, परेशानियों और पीड़ा को पहचान सकते हैं। हम सभी ने कोरोना के समय में देखा कि अनेकों ने अपनी पीड़ा को प्रेरणा बनाया और अपने दुख को करूणा में बदला और अपने प्रियजनों की पीड़ा के साथ-साथ समुदाय और पूरे विश्व की पीड़ा को भी महसूस किया और उस पीड़ा को दूर करने हेतु कई लोग आगे भी आये।
आइये सकारात्मक विचारों के साथ आगे बढ़ें और अपनी पीड़ा को प्रेरणा में बदलें। जो यादें हमें पीड़ा देती हैं उसे पीछे छोड़ दे और जो यादें हमें आनन्द देती हैं उन्हें मुरझाने न दें। अपने स्वयं पर और परमात्मा पर विश्वास रखें तथा इसी के साथ ही आगे बढ़ते रहें।

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