हम वादा बहुत करते हैं सबको छोड़कर आपके ही बनेंगे, जो कहेंगे, जो कराएंगे, जैसे चलाएंगे वैसे चलेंगे। चेक करें सारे दिन में कितना वादा निभाया और कितना भूल जा रहे हैं। गीत तो सदैव गाते रहते हैं कि मेरा तो एक दूसरा कोई नही, क्या ऐसी स्थिति है। कहते हैं दूसरा कोई नही परन्तु रखते हैं अनेक। चेक करें कि कोई है या सब समाप्त हो गए।
श्रेष्ठ स्थिति अर्थात सोचना, बोलना, करना सब एक समान है। इसमें कोई अंतर न हो। यह विशेषता अभी ही धारण करनी है न कि अंत में। क्योंकि कुछ लोग जो स्वयं के पुरूषार्थ के बजाए समय पर छोड़ देते हैं। समय आने पर हम स्वयं कमजोर होने के कारण फिर अगले समय पर छोड़ देते हैं। यदि कोई प्रदर्शनी देखने जानी हो तो हम कहेंगे समय मिलेगा तो जाएंगे। अभी हमको समय नही है यह सब अज्ञानियों के बोल हैं। क्योंकि दूसरे समय के ज्ञान से अज्ञानी हैं। लेकिन, हम तो ज्ञानी है कि यह समय कौन सा चल रहा है। यह समय वर्तमान का समय है जो सर्वश्रेष्ठ समय है और सभी कालों के कमाई का समय है। समय के ज्ञान वाले भी वर्तमान समय को गंवाते हुए आने वाले समय पर छोड़ देते है, ऐसी स्थिति में इन्हें ज्ञानी नही बल्कि अज्ञानी कहेंगे। क्योंकि समय पर हमारी क्रियेशन, रचना है। क्रियेशन के आधार पर क्रियेटर, रचियता का पुरूषार्थ होना अर्थात स्वयं को कमजोर समझना। यदि समय के आधार पर स्वयं का पुरूषार्थ होगा तो उसे रचियता नही कहेंगे। इस प्रकार हम समय की रचना कहलायेंगे, जैसा समय चलाएगा वैसे ही चलेंगे।
कमल समान आसन पर स्थित होने से, दुनिया के बुराईयों के आकर्षण से परे महसूस करेंगे और उनके आकर्षण में नही खिचेंगे। जैसे साइंस के द्वारा धरती के आकर्षण से परे हो जाते हैं और स्पेस में जाकर दूर चले जाते हैं अर्थात किसी भी प्रकार का आकर्षण हो चाहे देह का आकर्षण, चाहे देह के सम्बंधों का आकर्षण हो अथवा देह के पदार्थों का आकर्षण हो आकर्षित नही कर सकता है।
श्रेष्ठ आसन कमल पुष्प आसन के समान की स्थिति है। कमल पुष्प समान स्थिति अर्थात हर कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करते हुए भी इन्द्रियों के आकर्षण से परे रहना है। कमल अर्थात कर्म करते हुए भी विकारों के बंधन से मुक्त रहना है। अन्य अर्थों में देह को भी देखते रहे लेकिन देह के आकर्षण से भी मुक्त रहें। ऐसे लोग प्रवृत्ति में रहते हैं लेकिन लौकिक कचड़े से दूर रहते हैं। सदा अपने इस आसन को धारण करने वाले सर्वबंधन मुक्त और योगयुक्त होते हैं। इस आधार पर अपने को चेक करें कि कितने परसेंट मुक्त हुए हैं।
कहते हैं थोड़ा अनुभव होता है जब याद रहती है तो शक्ति मिल जाती है। शक्ति स्वरूप का अनुभव होता है लेकिन सदा नही होता है। आवश्य ही एक सहारे के बजाए कोई न कोई सहारे का आधार ले लिया होता है। आधार हीलता है तो हम स्वयं हीलते हैं और हलचल में आ जाते हैं। इसलिए अपने आधार को चेक करें। आधार को चेक करने के लिए हमारे पास दिव्य समर्थ बुद्धि और दिव्य नेत्र की जरूरत होती है। इसके लिए अन्य बातों से बुद्धि द्वारा किनारा करें, कहना और करना एक करें। वादा करने वाले नही बल्कि निभाने वाले बनें।
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