हरिद्वार,(Amit Kumar): कुम्भ मेला 2021 के सफल,निर्विध्न व शांतिपूर्ण सम्पन्न हो जाने पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री एवं श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा के अंतराष्ट्रीय संरक्षक श्री महंत हरि गिरी ने बीती रात्रि गोपनीय विशिष्ट अनुष्ठान किया। इस विशेष अनुष्ठान में मात्र तीन संतो ने भाग लिया। जिसमें मातृशक्ति के रूप में अखाड़े की निर्माण मंत्री सहज योगिनी माता शैलजा गिरि व किन्नर अखाड़े की आचार्य महामण्डलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी उपस्थित थी। मंगलवार की रात्रि कुम्भ मेला के सफल,शांतिपूर्ण समापन होने पर हरिद्वार की अधिष्ठात्री मायादेवी मन्दिर के प्रांगण में स्थित बरगद के पेड के नीचे तीनो संतो ने समवेत स्वर में श्रीमहंत हरिगिरि महाराज के बीज मंत्रों के उच्चारण के साथ हवन कुण्ड में आहूतियाॅ डाली। अनुष्ठान समापन के बाद श्रीमहंत हरिगिरि महाराज ने बताया वैश्विक महामारी कोरोना के चलते राष्ट्र तथा विश्व के साथ साथ कुम्भ मेला 2021 की सफलता पर भी अनिष्ठ के बादल मंडरा रहे थे,इसके शमन के लिए ही उन्होने इस अत्यन्त गोपनीय तथा विशिष्ट यज्ञ अनुष्ठान का संकल्प लिया था। उन्हे पूर्ण विश्वास था कि कुम्भ मेला निर्विध्न सम्पन्न होगा । कहा कि अब कोरोना का भी प्रभाव भी शीघ्र ही क्षीण होता जायेगा । श्रीमहंत हरिगिरि ने बताया कि हमारी सनातन वैदिक परम्परा में यज्ञों का उत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। वैदिक काल से ही विभिन्न मनोरथों की सिद्वि के लिए विशेष यज्ञ,पुत्रयेष्टि यज्ञ,मेघवर्षा यज्ञ,राजसूय यज्ञ,अश्वमेघ यज्ञ के साथ साथ राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय का सर्पो के विनाश के लिए किया गया सर्पयज्ञ आदि वर्तमान में भी जाने जाते है। उन्होने कहा कि हलांकि इस बार कुम्भ मेला का समापन कराना किसी कठिन चुनौती से कम नही था,वैश्विक महामारी के इस दौर में तमाम कठिनाईयाॅ सामने आ रही थी,लेकिन शासन के निर्देश के साथ ही मेला प्रशासन के अधिकारियों की लगनशीलता के चलते मेला सकुशल सम्पन्न हो गया। हलांकि अखाड़ा परिषद पहले ही मुख्यमंत्री को आश्वश्त कर चुकी थी कि कोरोना नियत्रण को लेकर शासन,सरकार जो भी नियम,निर्देश जारी करेगी,उसका समस्त संत समाज पालन करेगा। सनातन धर्म में कुम्भ मेला का विशेष महत्व है,चाहे स्थिति कठिन हो,लेकिन कुम्भ के सनातन परम्परा को नही छोड़ा जा सकता। उन्हे खुशी है कि सभी के सहयोग से वैश्विक महामारी के बावजूद मेला निर्विध्न,सफल,सकुशल सम्पन्न हो गया। कहा कि 1938 में जब आपदा आई थी तब मेले को बीच में ही निरस्त कर दिया गया था और यह पहली बार है कि मेला सकुशल अच्छी तरीके से संपन्न हुआ है। हलांकि अन्तिम शाही स्नान में प्रतीकात्मक स्नान के कारण अखाडों से संतो ने सीमित संख्या में स्नान किया,लेकिन स्नान का निर्विधन्न सम्पन्न होना सनातन धर्म के साथ साथ सभी के लिए अत्यन्त महत्पूर्ण उपलब्धि है। कहा कि उन्हे पूर्ण विश्वास है कि आने वाले समय में कोरोना का संक्रमण भी क्षीण होता जायेगा।
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