window.dataLayer = window.dataLayer || []; function gtag(){dataLayer.push(arguments);} gtag('js', new Date()); gtag('config', 'UA-96526631-1'); 16 साल के इस बच्चे के साथ कोई नहीं खेलता | T-Bharat
November 23, 2024

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16 साल के इस बच्चे के साथ कोई नहीं खेलता

दुनिया में कई ऐसी बीमारियां है, जिन्हें देख कर, सुन कर हैरानी होती है. ऐसी ही एक बीमारी है, Neurofribroma. इस बीमारी में मरीज़ के शरीर पर अनेक बेलगाम ट्यूमर निकल आते हैं, यह ट्यूमर बॉडी की Nerves से कनेक्टेड होते हैं. इस वजह से इनका ऑपरेशन करने पर बॉडी से खून बहने का खतरा रहता है, इसके अलावा इस बीमारी में पैदा हुए ट्यूमर्स को अपने आप बैठाने की कोई दवा अभी तक नहीं खोजी गई है. इसी खतरनाक और दर्दभरी बीमारी के साथ जी रहा है, मिथुन चौहान.

16 साल के मिथुन का चेहरा इस बीमारी की वजह से काफ़ी विकृत हो चुका है. बच्चे उसके चेहरे को देख कर डर जाते हैं, इसलिए मिथुन स्कूल नहीं जाता. गांव वालों ने मिथुन का नाम ‘भुतहा लड़का’ रख डाला है. मिथुन कहता है, ‘पता नहीं ऊपर वाले ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया है’.

Navada का रहने वाला मिथुन अपनी बीमारी की वजह से पूरे दिन घर पर ही रहता है. उसके घर वाले उसकी इस बीमारी के पीछे किसी बुरी आत्मा का साया होना मानते है. चेहरे पर हो चुकी बड़ी-बड़ी दर्दभरी गांठों की वजह से मिथुन को खाते-पीते समय काफ़ी दिक्कत होती है.

मिथुन के पिता रामजी चौहान का कहना है, ‘जब मिथुन 5 साल का था, तब उसकी तबीयत खराब हो गई थी. एक स्थानीय डॉक्टर ने जो दवाइयां बताई थी, उन्हें लेने के बाद से ही मिथुन के शरीर पर ये गांठें उभरने लगी थी. उस दिन के बाद से यह पूरे शरीर पर फैलते गये.

शुरुआत में रामजी और उनके पड़ोसी इसे ऊपर वाले का अभिशाप मान कर मिथुन के इलाज के लिए अनेक कर्मकांड करने लगे थे. एक दिन किसी ने उन्हें डॉक्टर अश्विनी दाश के पास भेजा, उन्होंने बताया कि मिथुन Neurobroma नामक जेनेटिक डिसऑर्डर से प्रभावित है. इस बीमारी में गांठें शरीर की नसों के साथ बढ़ती हैं.

यह बीमारी 33,000 में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है. कुछ डॉक्टर्स का कहना है कि इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है. जिसमें 3-4 लाख तक का खर्चा आता है.

मिथुन के पिता के आर्थिक हालात इतने अच्छे नहीं है कि वो उसे ले जाकर उसका इलाज किसी बड़े शहर के महंगे अस्पताल में करवा सकें.

बीमारी किसी भी इंसान को जीवन के किसी भी मोड़ पर हो सकती है. उस बीमारी की तकलीफ़ से जूझ रहे व्यक्ति के साथ आस-पास के लोगों को सपोर्टिव बिहेवियर रखना चाहिए, जिससे कि व्यक्ति को उस मुश्किल घड़ी में लड़ने की ताकत मिलती रहे.

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