देहरादून: भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अपने मुख से जिसे अपना श्रीविग्रह कहा है ऐसे वृंदावनधाम के वैजयंती आश्रम में, विगत नौ दिन से आयोजित मानस वृंदावन विषय को लेकर रामकथा चल रही थीं। आज इस कथा का विराम दिन था। व्यासासीन मोरारीबापू ने इस रसमय वृंदावन को, विशेष रस में डुबो दिया था। होलाष्टक के इन दिनों में रस के साथ रंग का भी सूक्ष्म रूप से अनुभव हो रहा था। रस और रंग के दो किनारों की अनुभूति कराने वाली इस कथा में पूरा पंडाल मानो बहा जा रहा था। वृंदावन रसिकों की राजधानी है, यहां यह स्वाभाविक संभाव्य है।
प्रतिदिन कथा के प्रारंभ में वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीकजी महाराज मुरारीबापू के प्रति अपने हृदय के अप्रतिम भावों को निरूशेष रूप से अपनी मधुरा वाणी में उतार कर विनीत भाव से व्यासपीठ की वंदना करते रहें। साथ ही साथ, प्रतिदिन एक वरिष्ठ कथाकार व्यासपीठ की वंदना करने हेतु और समस्त आयोजन के प्रति अपने आशीर्वादक वचनों से परिष्कृत करने के लिए उपस्थित रहते थे। श्री पुंडरीकजी ने अपने वक्तव्य में,भाव में बहते हुए कहा कि, बापू न जाओ। आज सुबह से हृदय कुछ विदीर्ण-सा है। अपने पुराने संस्मरण को याद करते हुए श्री पुंडरीकजी ने कहा कि, बापू की गोदी में खेलने का अवसर भी मिला है और विश्राम घाट की कथा में उनके साथ प्रसाद पाने का भी अवसर मिला है, वह उनका परम सौभाग्य था। बापू आज ब्रज को अपने मूल स्वरूप में छोड़कर जाते हैं। तत्पश्चात उड़ीसा के महामहिम राज्यपाल प्रोफेसर श्री गणेशी लालजी की चित्रमुद्रित उपस्थिति और उनके सद्भावनापूर्ण वचनों का सबने आस्वादन किया। वे तीन दिन उपस्थित रहकर कथा सुनना चाहते थे पर संभव न हो पाया उसका उनको अफसोस था। उन्होंने कहा की बापू की वाणी मधुर, प्रिय, सत्य से भरी है। बापू के हृदय में अत्यंत प्रेम रहता है, आंखों में करुणा का सागर रहता है। उनके मस्तक पर शांति और बंधुत्व का कुमकुम लगा है। बापू त्रस्त, पीड़ित,अपमानित, उपेक्षित मानव के हृदय में संजीवनी का संचार करते हैं। बापू की वाणी तमस का निर्वाण करती है, ज्योति का निर्माण करती हैं।
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