नई दिल्ली : भारतीय सेना में महिला अफसरों की एक बड़ी जीत हुई है। महिला अफसरों से जुड़े एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने परमानेंट कमीशन के लिए महिला अफसरों के लिए बनाए गए मेडिकल फिटनेस मापदंड मनमाना और तर्कहीन बताया। इससे महिला अफसरों को बड़ी राहत मिल सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने सेना को दिशा-निर्देश दिए हैं कि जिन महिला अफसरों को मेडिकल ग्राउंड पर पीसी से बाहर किया गया है उन पर एक महीने में फिर से विचार किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत के लिए विभिन्न क्षेत्रों में ख्याति अर्जित करने वाली महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन के अनुदान के लिए नजरअंदाज किया गया। महिला अधिकारियों ने अपनी याचिका में स्थाई कमीशन पर कोर्ट के फैसले को लागू नहीं किए जाने की बात कही थी। याचिका में उनलोगों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही करने की मांग की गई थी, जिन्होंने कथित रूप से कोर्ट के फैसले का पालन नहीं किया था।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारी सामाजिक व्यवस्था पुरुषों ने पुरुषों के लिए बनाई है, समानता की बात झूठी है। आर्मी ने मेडिकल के लिए जो नियम बनाए वो महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करता है। महिलाओं को बराबर अवसर दिए बिना रास्ता नहीं निकल सकता। कोर्ट ने 2 महीने में इन महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद सेना में कई महिला अधिकारियों को फिटनेस के आधार पर स्थाई कमीशन नहीं देने को कोर्ट ने गलत बताया।
बेंच ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर 2010 में पहला फैसला दिया था, 10 साल बीत जाने के बाद मेडिकल फिटनेस और शरीर के आकार के आधार पर स्थायी कमीशन न देना सही नहीं है। कोर्ट में भारतीय सेना की महिला अफसरों ने याचिका दाखिल कर कहा था कि फरवरी, 2020 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद सरकार ने अभी तक 50 फीसदी महिला अफसरों को भी स्थायी कमीशन नहीं दिया है।
इससे पहले फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को परमानेंट कमीशन देने का आदेश दिया था, लेकिन 284 में से सिर्फ 161 महिलाओं को परमानेंट कमिशन दिया गया। इन लोगों को मेडिकल ग्राउंड पर रिजेक्ट किया गया था। कोर्ट ने कहा कि जिनको रिजेक्ट किया है उनको एक और मौका दिया जाए। महिला अफसर अपनी नौकरी के दसवें साल में जिस मेडिकल स्टैंडर्ड में थी, उसी के हिसाब से उनको आंका जाए।
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