window.dataLayer = window.dataLayer || []; function gtag(){dataLayer.push(arguments);} gtag('js', new Date()); gtag('config', 'UA-96526631-1'); प्राइमरी स्कूलों के हालत ऐसे क्यों है | T-Bharat
November 22, 2024

TEHRIRE BHARAT

Her khabar sach ke sath

प्राइमरी स्कूलों के हालत ऐसे क्यों है

नई दिल्ली। ब्लैक बोर्ड का रंग काला होता है, लेकिन देश के भविष्य को संवारने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। देश की करीब 78 फीसद आबादी गांवों में रहती है। ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक शिक्षा के आम भारतीय जन सरकारी स्कूलों पर निर्भर रहते हैं। लेकिन नौनिहालों के भविष्य को गढ़ने वाले सरकारी स्कूल खुद बीमार है। देश में आधुनिक शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों के शासन काल से शुरू हुई। चॉर्ल्स वूड के डिस्पैच में प्राथमिक शिक्षा की दशा और दिशा पर चर्चा के साथ सुधार के उपाय किए गए। लेकिन व्यवहारिक तौर पर कुछ खास कामयाबी नहीं मिली। 1947 से अब तक प्राथमिक शिक्षा में सुधार के लिए कार्यक्रमों को अमल में लाया गया। लेकिन जो तस्वीर सामने नजर आती है वो खुशी देने की जगह दुख अधिक देती है। स्कूलों का भवन न होना, शिक्षकों की कमी(संख्या और गुणवत्ता) और बुनियादी सुविधाओं की कमी देश के नौनिहालों के सपनों पर ग्रहण लगा रही है। कुछ आंकड़ों के जरिए ये जानने की कोशिश करते हैं कि देश में प्राथमिक शिक्षा का हाल क्या है।

देश के प्राइमरी स्कूलों की तस्वीर

प्रारंभिक शिक्षा को मूल अधिकारों में शामिल करने के लिए 2002 में संशोधन।

2009 में आरटीई बना, 1 अप्रैल 2010 को शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू।

90 फीसद स्कूल मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं, जिनके लिए अधिनियम में मानक निर्धारित किए गए हैं।

देश के ग्रामीण इलाकों में औसत से ज्यादा प्राइमरी स्कूल लेकिन शिक्षा की बदहाली किसी से छिपी नहीं।

देश में औसतन 70 फीसद प्राइमरी स्कूल और 28 से 30 फीसद प्राइवेट स्कूल।

एनआइइपीए के दिलचस्प आंकड़े

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजूकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन एनआइइपीए के मुताबिक देश में 42 हजार स्कूलों के पास अपने भवन नहीं।

एक लाख से ज्यादा स्कूल ऐसे जिनके पास भवन के नाम पर एक कक्षा ।

मध्य प्रदेश की हालत सबसे खराब। करीब 14 हजार स्कूल भवन विहीन।

यूपी में करीब 11 सौ स्कूल भवन विहीन।

50 हजार स्कूलों में ब्लैक बोर्ड नहीं।

यूपी में स्कूलों में एक लाख 77 हजार शिक्षक कार्यरत हैं।

यूपी में 42 हजार स्कूलों में एक शिक्षक तैनात हैं जबकि 62 हजार स्कूलों में दो शिक्षक हैं।

तीन साल तक स्कूल जाने के बाद 60 फीसद से ज्यादा बच्चे अपना नाम नहीं पढ़ पाते।

कक्षा एक में नामांकित बच्चा 50 फीसद बच्चे कक्षा दसवीं तक पहुंचते हैं।

यूपी में एक लाख 10 हजार स्कूल में चार लाख 86 हजार से ज्यादा शिक्षकों की जरूरत ।

अभिभावकों की राय

देश के प्राइमरी स्कूलों के बारे में अभिभावकों के तर्क मिलेजुले रहे। ज्यादातर अभिभावकों का मानना है कि जहां तक शिक्षकों की योग्यता का मामला है तो सरकारी स्कूलों में प्राइवेट स्कूलों से ज्यादा योग्य शिक्षक हैं। लेकिन सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, शिक्षकों का समय पर स्कूल न आना, अंग्रेजी भाषा के प्रति शिक्षकों की उदासीनता की वजह से वो अपने बच्चों को नहीं भेजना चाहते हैं।

विशेषज्ञों की राय

देश के प्राइमरी स्कूलों के हाल पर जानकारों का कहना है कि प्राथमिक शिक्षा की बदहाली के लिए किसी विशेष सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। देश की इतनी बड़ी आबादी तक शिक्षा सुलभ करने के लिए सरकार को अपनी जीडीपी का कम से कम 6 फीसद खर्च करना चाहिए। लेकिन मुश्किल से शिक्षा पर खर्च की जाने वाली ये रकम करीब 2 फीसद है। जानकारों का कहना है कि देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की हालत ये है कि शिक्षकों की बहाली प्रक्रिया सरकारी नियमों और कमजोर इच्छाशक्ति की शिकार बन गई है। प्राथमिक शिक्षा में व्यापक परिवर्तन के लिए सरकारों और राजनीतिक दलों को दलगत भावना से ऊपर उठकर काम करना होगा।

news
Share
Share