By अमित कुमार
हरिद्वार । राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में शराब कारखाने लगाए जाने की सरकार की नीति के विरोध में चल रहे देवभूमि सिविल सोसायटी के आंदोलन के 22वें दिन चेतन ज्योति आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी ऋषिश्वरानन्द महाराज ने आंदोलन को समर्थन देते हुए सरकार से अपनी नीति पर पुर्नविचार करने की मांग की है। देवपुरा चैक स्थित देवभूमि सिविल सोसायटी के धरना स्थल पर आंदोलन को समर्थन देने पहुंचे स्वामी ऋषिश्वरानन्द महाराज ने कहा कि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि देवभूमि उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में शराब कारखाने लगाए जाने के विरोध में 22 दिन से आंदोलन चल रहा है। संत समाज भी शराब कारखाने लगाए जाने के विरोध में लगातार आवाज उठा रहा है। लेकिन गूंगी बहरी सरकार कुछ सुनने को तैयार नहीं है। शांति की भाषा नहीं समझने वाली प्रदेश सरकार उग्र आंदोलन चाहती है। उन्होंने कहा कि यदि तीन दिन के अंदर सरकार की और से कोई जवाब नहीं मिलता है तो आंदोलन को बड़े स्तर पर ले जाया जाएगा। उन्होंने कहा कि जहां से गंगा जैसी तमाम पवित्र नदियां निकलती हैं। हिन्दूओं के चारो धाम जहां स्थित हैं। ऐसे पवित्र स्थल पर सरकार शराब कारखाने स्थापित करने की नीति लागू कर रही है। जिसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बाबा बलराम दास हठयोगी ने कहा कि सरकार जनभावनाओं को समझना ही नहीं चाहती है। शराब कारखाने लगवाने की कोशिशों में जुटी प्रदेश सरकार उत्तराखण्ड के युवाओं को रोजगार देने के बजाए नशे की गर्त में धकेलना चाहती है। सरकार को शराब समर्थक नीति को बदलना ही होगा। पंडित अधीर कौशिक ने कहा कि 22 दिन बीतने के बाद भी आंदोलन की कोई सुध नहीं लेने से सरकार की असंवेदनहीनता साफ पता चल रही है। पंडित अधीर कौशिक ने कहा कि आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाए बिना पीछे नहीं हटेंगे। सरकार को जनभावनाओं व देवभूमि की पवित्रता का ख्याल रखते हुए शराब कारखाने लगाने की नीति को वापस लेना होगा। जेपी बड़ोनी ने कहा कि प्रदेश का विकास करने में पूरी तरह विफल साबित हो रही सरकार युवाओं को नशे की और धकेलने का काम कर रही है। शराब कारखाने लगने से उत्तराखण्ड की शांत वादियों में शराब कारोबारियों को बढ़ावा मिलेगा। शराब कारखाने किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे। धरने पर उत्तराखण्ड राज्य आंदोलनकारी संघर्ष समिति के सतीश जोशी, जगत सिंह रावत, तेज सिंह रावत, अजब सिंह चैहान, विष्णु सेमवाल, शांति, सरोजनी जोशी, महेश चंद्र, आनन्द, मदन मोहन, पंडित पवन कृष्ण शास्त्री, अशरफ अब्बासी आदि ने विचार रखे।
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