नई दिल्ली/गुरुग्राम । दिल्ली-एनसीआर की भागदौड़ भरी व्यस्त जिंदगी में स्वास्थ्य कहीं हाशिए पर चला गया है। जिंदगी की जद्दोजहद में लोगों का रात की शिफ्ट में काम करना, कार्यस्थल और घर के बीच लंबी ड्राइविंग और फिर थकान मिटाने व सुकून की चाह में देर रात की पार्टी करना जीवनशैली का हिस्सा बन रहा है। कम उम्र में बड़ी बीमारियां, अनचाही परेशानियां और शारीरिक और मानसिक विकृतियां इस दौर की समस्या बनने लगी हैं। हाल के वर्षो में हुए सर्वेक्षणों में पता चला है कि दिल्ली-एनसीआर में लोगों का स्वास्थ्य जीवनशैली की बलि चढ़ रहा है। कम उम्र में ही मोटापा, तनाव, अवसाद और इनसे जनित हृदय संबंधी बीमारियां लोगों को अपनी चपेट में लेने लगी हैं।
सर्वेक्षणों में झलकती बीमार एनसीआर की तस्वीर
वर्ष 2017 में हुए एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली एनसीआर के 80 प्रतिशत लोग मोटापे का शिकार हैं। 2018 के एक सर्वे के मुताबिक 31 से 50 वर्ष की उम्र के 70 प्रतिशत लोग मोटापे से जूझ रहे हैं। वर्ष 2018 में आई ‘जुवेनाइल ओबेसिटी’ सर्वे रिपोर्ट में दिल्ली-एनसीआर के 35 प्रतिशत किशोर मोटापे का शिकार पाए गए। इसके अलावा 2018 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा किए गए एक सर्वे में दिल्ली के स्कूलों का हर तीसरा बच्चा मोटापे व उससे पैदा हुई परेशानियों से जूझ रहा है। इन सभी अध्ययनों में पता चलता है कि बच्चों से लेकर बड़ों तक में लाइफस्टाइल बीमारियां हैं।
नाइट शिफ्ट ने बिगाड़ी सेहत
दिल्ली एनसीआर की बीपीओ कंपनियों का हाल ऐसा है कि यहां काम करने वालों की प्राकृतिक दिनचर्या बदल जाती है। कंपनियों में काम करने वाले युवा अक्सर नाइट शिफ्ट करते हैं। ऐसे में उन्हें अनिद्रा जैसी बीमारियां तो हो ही रही हैं, साथ ही शोधों में सामने आया है कि यह मॉलीक्यूलर स्तर पर भी स्वास्थ्य को बिगाड़ रही है। मनोचिकित्सक डॉ. ब्रह्मदीप सिंधू के मुताबिक एक सर्वे में पाया गया था कि तकरीबन छह प्रतिशत जींस एक विशेष समय पर सक्रिय अथवा निष्क्रिय रहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो यह जीवनशैली का हिस्सा बन जाते हैं और शरीर इसी हिसाब से ढल जाता है। इसमें बदलाव से समस्या हो सकती है।
शरीर के साथ मानसिक फिटनेस जरूरी
पद्मश्री डॉ. केके अग्रवाल (अध्यक्ष, हार्ट केयर फाउंडेशन व पूर्व अध्यक्ष इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) का कहना है कि सबसे पहले हमें यह समझने की जरूरत है कि जीवन में फिट होने का मतलब क्या होता है। फिटनेस का मतलब होता है शारीरिक व मानसिक रूप से फिट होना।
यदि आप शारीरिक रूप से फिट होने के साथ-साथ मानसिक रूप से खुश हैं तो आप पूरी तरह से फिट हैं। इसमें यदि शारीरिक फिटनेस की बात करें तो यदि हम छह मिनट में 500 मीटर की दूरी का सफर तय कर लेते हैं तो हम शारीरिक रूप से फिट हैं। यदि शरीर के आतंरिक रूप से फिट होने की बात करें तो इसमें नीचे का ब्लड प्रेशर(डायस्टॉलिक बीपी), पेट की चौड़ाई, फास्टिंग शूगर व गंदे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 80 से कम है तो आप आंतिरक यानी कैमिकली रूप से भी फिट हैं।
अब बात करते हैं कि मानसिक रूप से फिट होने की। इसमें यदि दिल की गति 80 से कम है तो आप मानसिक रूप से भी फिट है। क्योंकि, आप जितना तनाव लेंगे उतना ही आपके दिल की गति भी बढ़ेगी और इसके साथ साथ आपकी बीमारियां भी बढ़ेंगी। आपके जीवन में चाहे सुख आए या फिर दुख आए आपको इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए। हमें खुद को इस तरह से तैयार करना होगा कि हमारे जीवन में सुख व दुख दोनों ही समान हैं। इसमें सच बात यह भी है कि जीवन में मानसिक रूप से खुश होना शारीरिक रूप से खुश होने से कही ज्यादा जरूरी है। शारीरिक रूप से फिट होने के लिए आप दिनभर में जितना अधिक चल सकते हैं उतना अधिक चलें।
वहीं, यदि खाने पीने की बात करें तो शारीरिक रूप से फिट होने के लिए यह जरूरी नहीं है कि पूरे दिनभर में आप कितनी खराब चीजों का सेवन कर रहे हैं, बल्कि इसमें यह जरूरी है कि खराब चीजों के साथ साथ दिनभर में आप कितनी अच्छी चीजों का सेवन कर रहे हैं। जैसे कि आपका मन है कि मुङो गोलगप्पे खाने हैं तो आप इसे खाएं, लेकिन इसके अलावा आपकों फल आदि का भी सेवन करना है।
वहीं, जीवन में मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए हमें अपने जीवन में योग में प्रणायाम को शामिल करना चाहिए। क्योंकि, प्रणायाम करते ही हमारे मस्तिष्क को शांति मिलती है व हमारा सारा तनाव दूर हो जाता है व दिल की धड़कन भी संतुलित हो जाती है। यह भी है आज के युवा जिस तरह से
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