बीजिंग । चीन के जल संसाधन मंत्रालय ने कहा है कि भारत और चीन को बाढ़ की समस्याओं को कम करने के लिए संयुक्त रूप से कार्य करना चाहिए। मंत्रालय ने कहा कि ब्रह्मपुत्र बेसिन के ऊपर नदी में पानी को नियंत्रित करने के लिए एक तंत्र खोजने की जरूरत है। इसके लिए दोनों देशों को मिलकर काम करने की जरूरत है। आइए जानते हैं कि नई दिल्ली और बीजिंग के बीच क्या है ब्रह्मपुत्र विवाद। क्या है दोनों देशों के बीच करारनामा। इसके अलावा ब्रह्मपुत्र नदी के बारे में भी।
मंत्रालय का दावा है कि ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ की मुख्य वजह अप स्ट्रीम में पानी को रोकने का कोई तंत्र नहीं है। यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण है। मंत्रालय का कहना है कि कि इस समस्या पर अगर दोनों देश मिलकर काम करते हैं तो बाढ़ जैसी त्रासदी से निपटा जा सकता है। उनका कहना है कि इस क्षेत्र में जल नियंत्रण परियोजनाओं की कमी से ब्रह्मपुत्र नदी में निचले इलाकों में बाढ़ आती है। गौरतलब है कि वर्ष 2006 के बाद से ट्रांस बॉर्डर नदियों पर भारत-चीन विशेषज्ञ स्तरीय की 12 बैठकें हो चुकी हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी का तीन देशों में जल का प्रवाह
ब्रह्मपुत्र नदी एशिया की सबसे बड़ी नदी है। यह तिब्बत से निकलते हुए भारत में प्रवेश करती है। तिब्बत में इस नदी को यरलुग त्संगपो कहा जाता है। भारत से होती हुई यह बांग्लादश में जाने के बाद गंगा में मिल जाती हे। प्रतिवर्ष मानसून के मौसम में इस नदी में बाढ़ आती है। इसके चलते पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में भीषण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बाढ़ के मद्देनजर भारत और बांग्लादेश का चीन के बीच यह करार है कि वह अपने यहां से हाइड्रोलॉजिकल डाटा साझा करेगी। यह आंकड़े मानसून के मौसम में 15 मई से 15 अक्टूबर के बीच होंगे। दरअसल, यह जानकारियां असल में पानी के स्तर को लेकर होती है, ताकि जिन देशों में नदी के जल का प्रवाह है वहां बाढ़ के बारे में सूचित किया जा सके।
भारत की अधिकतर नदियों का उद्गम स्थल तिब्बत
दरअसल, गंगा को छोड़कर एशिया की तमाम नदियां का उद्गम चीनी नियंत्रण वाले तिब्बत क्षेत्र है।कई भारतीय नदियों का उद्गम स्थल तिब्बत है। तिब्बत के विशाल ग्लेशियर, भूमिगत जल के विपुल स्रोत और समुद्र तल से काफी ऊंचाई के कारण पोलर घ्रुवों के बाद तिब्बत ताजा पेयजल का विश्व का सबसे बड़ा स्रोत है। यहां तक की गंगा की दो सहायक नदियां भी होकर बहती है। जिस तरह से दुनिया में जल संकट उभर रहा है ऐसे में दोनों देशों के बीच तनाव भी बढ़ा है। दोनों देशों में निरंतर पानी की मांग बढ़ रही है। अगर पानी की मांग वर्तमान दर से बढ़ती रही तो इसका प्रभाव दोनों देशों के उद्योग और कृषि की विकास दर पर पड़ेगा। भारत की कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल चीन से ज्यादा है। भारत में कृषि योग्य भूमि 1605 करोड़ हेक्टयर है, जबकि चीन में मात्र 1371 करोड़ हेक्टेयर है।
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