देहरादून। प्रेमसुख धाम में प्रवचन करते हुए और छठे पर्युषण की बधाई देते हुए श्रोता जनों को स्थानकवासी जैन संत लोकमान्य गुरुदेव अनुपम मुनि जी महाराज ने कहा भक्ति के लिए कोई उम्र नहीं होती। किसी भी उम्र में हम भक्ति कर सकते हैं परमात्मा के चरणों में समर्पित कर सकते हैं और साधना कर सकते हैं घर बार परिवार छोड़कर के भगवान के भजन में लोग सकते हैं इसीलिए भगवान महावीर ने कहा जरा जाओ ना फिर देगी वही लाभ हम ना बन रही जावन देना हाय अंकिता उधम समाचार अर्थात जब तक बुढ़ापा नहीं आता जब तक रोग ग्रस्त नहीं होता और जब तक मोदी की प्राप्ति नहीं होती तब तक व्यक्ति को धर्मा आचरण करते ही रहना चाहिए भगवान का भजन करना ही चाहिए साधना आराधना करनी ही जाए त्याग तपस्या करते रहना ही जाए अपनी सांसो सांस में तब जब साधना आराधना को स्थान देना ही जाए इसी से हमारी आत्मा का कल्याण होता है ऐसा प्रसंग आज अंत कृत दशांग हां है में गुरुदेव अनुपम मुनि ने कहा है कि श्रीएवंता मुनि जी भी भगवान महावीर के चरणों में सिर्फ 5 वर्ष की उम्र में जैन भागवती दीक्षा लेकर संयम पारकर अपनी आत्मा का उद्धार किया अष्ट कर्मों से मुक्त हुए सिद्ध शिला पर स्थित है मुनि अनुपम मुनि जी महाराज ने कहा की भूल जीवन में हजारों से हो जाती है और अपनी भूल को कबूल कर उस भूल को नहीं दौरा नहीं इंसानियत होती हैं और इसे ही संयम जाते हैं जो संयम का पालन करता है और अपनी भूलों को सुधारता है वह व्यक्ति वही व्यक्ति साधना के शिखर पर पहुंचता है।
श्री एवं दामनी जी ने अपनी पात्री रूपियनों को तेरा कर अपने फूलों को कबूल कर भगवान महावीर के समक्ष कहा कि प्रभु मुझसे गलती हुई और इस गलती का में प्रेषित लेता हूं और मैं अपने आप को इस पाप से दूर रखता हूं अपने मन को वाणी को और शरीर को पापों से दूर करता हूं शरीर और मन वाणी भावों को पवित्र करता हूं 12 प्रकार के तत्वों से अपने आपको झुकता हूं और एवन कंपनी ने ऐसा ही किया अपनी आत्मा को शुद्ध किया 90 वर्ष तक संयम की परिपालना की और अंत में सल्लेखना के साथ विपुल गिरिपरवत पर सिद्ध बुद्ध मुक्त हुए सवाउंदलं जैन संत ने कहा कि आत्मा ही परमात्मा है आत्मा में ही परमात्मा बनने की संभावना है जैसे कर वृक्ष बनने की संभावना होती है उसी प्रकार से आत्मा में परमात्मा बनने की संभावना संपूर्ण रूप से होती है जैसे बौद्ध से समुंद्र बनता है ही किसी प्रकार से आत्मा से परमात्मा हुआ जाता है आत्मा की परिस्थिति को ही प्रभातम कहा जाता है और ऐसे भाव बचपन युवा और वृद्धावस्था में भी प्राप्त किया जा सकता है उसके लिए ज्ञान दर्शन चरित्र और तब की आराधना और उसकी साधना करने की आवश्यकता है यान दर्शन चरित्र तब जीवन में कभी भी अपनाया झा सकता है उसके लिए कोई उम्र नहीं होता आज के पावन प्रसंग पर विनोद जैन और सुमन जैन का वर्धमान श्री वर्धमान श्रावक संघ की ओर से और प्रेमसुख धाम के कार्यकर्ताओं की ओर से माल्यार्पण हॉट के द्वारा स्वागत हुआ सम्मान किया गया। श्री प्रेमसुख धाम की ओर से सभी श्रोता जनों को प्रसाद वितरण किया गया श्री अनुपम मनी जी महाराज ने श्रीमद् भागवत अंतकृत 10 आशुतोष सुनाते हुए कहा कि जैसे श्रीदेवी नए बंता कुमार को संस्कार दिए इसी प्रकार से हमें भी अपने बच्चों को धार्मिक के संस्कार से भरना चाहिए अंत में गुरुदेव श्री राजसमंद जी महाराज ने सभी श्रोता जनों को मंगल पाठ सुनाकर अपना आशीर्वाद दिया।
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