देहरादून : पारे की उछाल के साथ ही 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में जंगलों के सुलगने का सिलसिला तेज हो गया है। पहाड़ से लेकर मैदान तक जंगल धधक रहे हैं। ऐसे में वन महकमे की अग्नि परीक्षा अप्रैल से ही शुरू हो गई है। शुरुआती तीन दिनों में आग की 48 घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जबकि इससे पहले मार्च में यह आंकड़ा 48 और फरवरी में नौ था। हालांकि, सूबे के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक आरके महाजन का कहना है कि वनों को आग से बचाने को हरसंभव उपाय किए गए हैं।
सूबे में हर साल 15 फरवरी से 15 जून (फायर सीजन) तक के वक्फे में वनों पर आग रूपी आफत टूटती है। इससे प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर वन संपदा को क्षति पहुंच रही है। पिछले साल तो आग ने विकराल रूप धारण किया और यह गांव-घरों की देहरी तक पहुंच गई थी। इस बार फरवरी से मार्च तक मौसम के साथ देने से आग की घटनाएं कम हुई, मगर अब तापमान बढऩे से आग की घटनाओं में भी वृद्धि दर्ज की जा रही है। अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि राज्य में अब तक हुई आग की 105 घटनाओं में से 48 अपै्रल के इन तीन दिनों में हुई।
ऐसे में विभाग के सम्मुख जंगल बचाने की चुनौती है। असल में विभाग के पास आज भी आग बुझाने का मुख्य हथियार झांपा (हरी टहनियों को काटकर बनाया जाने वाला झाडू़) ही है। संसाधनों का टोटा, बजट की कमी, जनजागरूकता का अभाव, जंगलों में नमी समेत अन्य कई चुनौतियां भी उसके सामने खड़ी हैं।
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