सेमरा,(Amit kumar)।दूसरों की निःस्वार्थ भलाई से बढ़कर मनुष्य-जीवन की कोई और सार्थकता नहीं है।केवल अपने लिए तो नालियों के कीड़े मकोड़े भी जी लेते हैं किंतु मनुष्य तो वह है जो सभी जीवों के लिए जीता और मरता है।परोपकार मानव जीवन का धर्म है। परोपकार को नैतिक गुण कहा गया है। अतः इसमें छल-कपट और स्वार्थ-साधना की लिप्सा नहीं रहती।ये विचार व्यक्त किया राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ चकिया की अध्यक्ष सुश्री रीता पाण्डेय ने।मौका था मातृभूमि सेवा ट्रस्ट के तत्वावधान में आर.के नेत्रालय द्वारा लगातार आयोजित होने वाले निःशुल्क नेत्र चिकित्सा शिविर के आयोजन का । उन्होंने कहा कि सेवा कोई भी व्यक्ति निस्वार्थ भाव से करता है, परन्तु इसके बदले में वो संपत्ति प्राप्त हो जाती है जो लाखों रुपए देकर भी नहीं खरीदी जा सकती वह संपत्ति है मन का सुख । परोपकार मनुष्य में उच्च भावनाओं का विकास करता है। इससे मनुष्य का मानसिक उत्थान होता है। गांधी स्मारक इंटर कालेज के पूर्व अध्यापक श्री सर्वजीत सिंह ने कहा कि परोपकारी तुच्छ स्वार्थ एवं छल-प्रपंच से ऊपर उठकर ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के आदर्श को अपने जीवन में अपनाता है तथा लोगों का प्रिय पात्र बनता है। मानव जीवन की सार्थकता परोपकार में ही है। यही मनुष्य में ईश्वरीय गुणों का विकास करता है और समाज में “सत्यं शिवं सुन्दरम्” की भावना का प्रसार करता है, तुलसी ने भी कहा है “परहित सरिस धरमु नहिं भाई। शिविर में कुल मरीजों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया। शिविर का संचालन श्री सुबाष विश्वकर्मा ने किया और आभार सत्यानंद रस्तोगी ने किया।शिविर में प्रमुख रूप से डा.शहजाद,
डा.अजय पाण्डेय, चन्द्रशेखर शाहनी, प्रधान बदरुद्वजा अंसारी, प्रधान रामनिवास सिंह,सुमंत कुमार मौर्य,
अजय सिंह, शन्नि चौहान, मिट्ठू बाबा,मु.तसलीम , गोपाल सिंह इत्यादि लोग उपस्थित रहे।
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