ऋषिकेश,(Amit kumar): परमार्थ निकेतन में आज गोपाष्टमी के पावन अवसर पर फिज़िकल डिसटेंसिंग का पालन करते हुये प्रकृति संरक्षण हेतु हवन किया। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज, जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी, परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों, आचार्यों, परमार्थ परिवार के सदस्यों ने मिलकर गाय एवं गोविन्द की पूजा-अर्चना की।
शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि गाय के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है। हिन्दू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। आज गोपा अष्टमी के अवसर पर परमार्थ निकेतन में वेद मंत्रों के उच्चारण के साथ गौ माता की पूजा अर्चना की।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि कृषि और ऋषि दो संस्कृतियाँ है। ऋषि संस्कृति जिसने हमें हमारी संस्कृति दी, सभ्यता दी और गौरवमयी इतिहास दिया, जिससे हम अपने संस्कारों को लेकर आगे बढ़ सके। दूसरा है कृषि संस्कृति, वह भी ऋषियों की ही देन है। उन ऋषियों ने संदेश दिया कि अगर कृषि को बचाये रखना है तो गौ माता को बचाना होगा। इस कोरोना काल में हम काॅउ कल्चर और गंगा कल्चर की ओर लौटे। माँ गंगा के पावन जल की बड़ी महिमा है, वैसे ही गौ माता के गौमूत्र से बने अर्क का सेवन करने से शरीर स्वस्थ और निरोगी रहता है। उन्होने कहा कि गंगा और गौ भारत की विशेषता है, इसे भूल न जाये। हमारे देश में पायी जाने वाली देशी गायें कल्पतरू से भी बढ़कर है। पूज्य स्वामी जी ने गौ के दूध से बने उत्पादों का महत्व बताते हुये कहा कि गाय के दूध से बने सभी उत्पाद बहुत ही लाभदायक है। गौ मूत्र नहीं बल्कि यह तो अमृत है आईये गौ और गंगा संस्कृति को अपनाये और स्वस्थ और निरोगी रहें।
पूज्य स्वामी जी ने परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों को गोपा अष्टमी का महत्व समझाते हुये कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने गौ माता की सेवा कर हमें संदेश दिया कि गाय, माता के समान है व पूजनीय है। धरती पर सन्तुलन बनायें रखने के लिये मनुष्य के साथ सभी जीव जन्तुओं का धरती पर होना नितांत आवश्यक है। जीवों में गाय अत्यंत कोमल हृदय और उपयोगी प्राणी है। स्वामी जी ने देशवासियों से आह्वान किया कि गाय को संरक्षण प्रदान करे और उनका संवर्द्धन करे क्योकि गाय हिन्दू संस्कृति का प्रतीक है।
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