ऋषिकेश,(Amit kumar): भगवान श्री राम के अनन्य भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी का आज अवतरण दिवस है। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने तुलसीदास जी के अवतरण दिवस की शुभकामनायें देते हुये कहा कि वास्तव में भगवान श्री राम जी के भक्तों के लिये यह वर्ष उत्साह और उमंग लेकर आया है। वर्षो की इंतजार के बाद भगवान श्री राम जी का दिव्य और भव्य मन्दिर का निर्माण हो रहा है, यह एक अद्भुत संयोग है।
संवद् 1554 को श्रावण शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अवतरित गोस्वामी तुलसीदास जी ने सगुण भक्ति धारा को प्रवाहित किया। गोस्वामी तुलसीदास ने महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित ’रामायण’ को लोक भाषा में चित्रित किया जिसका परिणाम है कि वर्तमान समय में महाग्रंथ रामचरित मानस सर्वसुलभ और सहज रूप में उपलब्ध है और जिसके माध्यम से सबका मार्गदर्शन हो रहा है।
दैहिक-दैविक भौतिक तापा, रामराज काहुहि नहिं व्यापा। तुलसीदास जी ने रामराज्य के रूप में एक श्रेष्ठ राज्य की संकल्पना दी है। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज को सही दिशा में मोड़ने का प्रयास किया है। साथ ही राजा और प्रजा के मधुर सम्बंधों की व्याख्या की है। ’’मुखिया मुख सों चाहिये, खान-पान को एक, पालई पोषइ सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।’’
तुलसी दास जी ने रामचरित मानस के माध्यम से एक आदर्श परिवार, श्रेष्ठ राजा और संस्कारयुक्त पारिवारिक जीवन शैली, धर्म, मर्यादा, भक्ति, त्याग, बड़ों की आज्ञा का पालन जैसे आदर्शे को परिभाषित किया है। रामचरित मानस वास्तव में एक अद्भुत महाग्रंथ है, जिसमें जीवन के सभी सम्बंधों के मध्य आदर्श और मर्यादा को प्रस्तुत किया गया है। यह ग्रंथ सभी युगों के लिये प्रासंगिक है, इसमें भाई-भाई का प्रेम; पिता पुत्र का प्रेम; माँ और बेटे का पे्रम; पति-पत्नी का प्रेम, राजा और प्रजा का प्रेम और सबसे अधिक भक्त और भगवान के प्रेम को प्रकट किया गया है। इन सभी सम्बंधों में भक्ति, त्याग, तपस्या, समर्पण एवं निष्ठा का भाव यथार्थ रूप में परिलक्षित होता है। रामायण अपने आप में आदर्श जीवन गाथा है, जो सदियों से जीवित रही है और अनन्त काल तक जीवंत रहते हुये गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा व्यक्त विचार ’’हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’’ को सार्थक करती रहेगी।
वहीं दूसरी ओर तुलसीदास जी ने विनयपत्रिका के माध्यम से परिवारों के मध्य खोते संस्कारों और बढ़ते विकारों का वर्णन भी किया है। उन्होने अपने साहित्य के द्वारा समाज में नारी की दशा और उस समय व्याप्त अंधविश्वास का चित्रण भी किया है। उन्होने समाज के हर उन पहलुओें और प्रथाओं को उजागर करने का प्रयास किया जो उस समय व्याप्त थीं।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारतीय साहित्य ने समाज को श्रेष्ठ मार्ग दिखाने का काम किया है। तुलसीदास जी ने तो अपनी कविताओं के माध्यम से एक आदर्श समाज की स्थापना की है; रामराज्य की परिकल्पना को साकार किया है, उन्होने आदर्श और सुसंगठित समाज को बल दिया है। उनके साहित्य में कर्तव्य और निष्ठा पर बहुत बल दिया गया है। पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि तुलसीदास जी का साहित्य ऐसा है जैसे सागर स्वयं नदियों में समाहित हो गया हो अर्थात उनका एक एक दोहा गागर में सागर भर देता है।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि तुलसीदास जी ने अपने साहित्य के माध्यम से उस समय के समाज का वास्तविक चित्रण किया है। उनका साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं बल्कि प्रतिबिम्ब भी है।
पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि मुझे तो लगता है वर्तमान समय में जब कई जगह हम देखते हैं कि आज की युवा पीढ़ी अपने संस्कारों और संस्कृति को खो रही है तो परिवारों में हमें रामायण, महाभारत और गीता जैसे सद्ग्रंथों को स्थान देना होगा ताकि हमारे बच्चों में और आगे आने वाली पीढ़ियों में ये संस्कार समाहित हो सके।
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