हरिद्वार,(Amit kumar) वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण से देश-दुनिया के अधिकांश शहर तथा वहां रहने वाले लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है। इस वायरस के प्रभाव से अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्था, जीवन-शैली, शिक्षा, सामाजिक ढांचा, जैव-विविधता एवं स्वास्थ्य सर्वाधिक प्रभावित हुए है। वही भारत मे इस महामारी ने जीवन की महत्ता से जुडे अधिकांश क्षेत्रों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। जिसमे मानवीय स्वास्थ्य तथा स्वास्थ्य सुविधाओं से जुडी आवश्यकताओं में तकनीकी विकास, संसाधन एवं गुणवत्ता में कमी आदि मूलभूत सुविधाओं पर गहरा असर हुआ है। कोरोना के संक्रमण ने लोगों की जीवन-शैली मे ऐसा बदलाव ला दिया है कि लोग अपने अतीत का वह समय जिसमे कम सुविधाएं तथा संसाधन होने पर भी जीवन की मूल्यपरक बातों के महत्व को जीवन का सर्वोत्तम आधार मानने पर विवश हो गएं है। और ऐसा इसलिए नही की कोरोना ने हमारी वाहय तथा आन्तरिक दोनो स्थितियों पर कुठाराधात किया है, अपितु इसलिए क्योकि यही जीवन का परम वास्तविक सत्य है। मनोवैज्ञानिक डाॅ0 शिव कुमार चैहान के अनुसार 11वर्तमान पीढी देश की भावी पीढी के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए मूलभूत सुविधाओं के स्रोत तथा सामाजिक ढांचे में जब कोई बदलाव करती है तब इस बदलाव के साथ-साथ भावी पीढी के स्वस्थ्य एवं सम्पन्न जीवन की नई आधारशिला तैयार करना भी उसका दायित्व होता है। कोरोना के प्रभाव ने भावी पीढी के स्वस्थ एवं सम्पन्न जीवन की उसी आधारशिला पर भी प्रहार किया है। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से यह पता चलता है कि बडों के जीवन को अव्यवस्थित करने के साथ ही कोरोना ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डाला है। आज बच्चें कोरोना महामारी के कारण स्वयं को ज्यादा असुरक्षित एवं चिंतित अनुभव करने लगे है। असुरक्षा के इस भाव ने बच्चों के कोमल मन पर चिंता, डर, चिडचिढापन, उत्तेजना, अधिक संवेदनशीलता, गुस्सा, एकाकीपन जैसे मानसिक विकारो कोे पैदा कर दिया है। सामान्य स्थिति में माता-पिता बच्चों को इन मानसिक विकारो की स्थिति तथा उनके कारण को बच्चों के अनुभव से दूर रखते थे। परन्तु कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न लाॅकडाउन तथा कफ्र्यु जैसी स्थिति में एक ओर जहां माता-पिता स्वयं एंग्जाईटी, फ्रस्टेशन, डिप्रेशन के साथ संवेदनशीलता तथा भविष्य से जुडी कई चिंताओं से घिरे है, तो ऐसे में बच्चों को इन मानसिक विकारो से बचाने के प्रयास कैसे संभव हो, यह भी चिंता का विषय है। इसलिए वर्तमान पीढी का यह दायित्व बनता है कि कोरोना जैसी विषम स्थिति में भी बच्चों की संवेदनशीलता तथा उनकी रूचि को महत्व प्रदान करते हुए उनसे बेहतर संवाद बनाएं रखे तथा विषम परिस्थिति में समस्या समाधान मे मित्रवत व्यवहार रखते हुए इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एक प्रेरक के रूप में उनके साथ रहे। ऐसा करने से बच्चों मे असुरक्षा की भावना कम होगी तथा वे स्वयं की क्षमता का सदुपयोग करते हुए रचनात्मक ढंग से लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ सकेगंें।
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