-Manoj srivastava
अव्यक्त अवस्था,अशरीरी अवस्था सभी समस्याओं के समाधान का हल है। इसे ही हम साइलेन्स की शक्ति कहते है।
वास्तव में शारीरिक और बुद्धिक क्षमता की एक सीमा है। इस सीमा के बाद व्यक्ति अपने को सरेंडर कर देता है। अर्थात विज्ञान के पास भी एक सीमा है,इस सीमा के बाद विज्ञान भी असहाय हो जाता है। वर्तमा कोरोना काल की परिस्थितियां इसका ज्वलन्त प्रमाण है।
हमारे बुद्धि की एक सीमा है। इस सीमा तक ही बुद्धि गणित लगाकर आकलन कर सकती है,इसके बाद कम्प्यूटर ,पुनः सुपर कम्प्यूटर का सहारा लेती है। फिर भी प्रकृति के असंख्य प्रश्नों पर मौन हो जाती है।
इसी प्रकार हमारे इन्द्रियों अर्थात आँख ,कान की भी एक सीमा है। जैसे हमारी आँख एक निश्चित वेवलेंथ की निर्धारित सीमा में देख सकती है और कान 20 से 20000हर्ट्ज आवृत्ति के सीमा के भीतर की ध्वनि सुन सकती है। सुपरसोनिक ध्वनि नही सुन सकती है।
अर्थात यह सम्भव है कि अव्यक्त, अशरीरी अवस्था मे हमारे ठीक बगल में बैठा हो और हम उसे न देख पाए।
बुद्धि और इन्द्रियों की क्षमता के ऊपर का ज्ञान प्राप्त करने के लिये हमें अव्यक्त ,अशरीरी अवस्था का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्षरूप से सहारा लेना होगा।
इस ज्ञान को इंटुटिव ज्ञान अथवा अंतर्ज्ञान कहते है। यह ज्ञान अनन्त सम्भावनो से युक्त है। इसके माध्यम से हम दुनिया का कोई कार्य कर सकते है। इसका सहारा लेकर हम जीवन के प्रगति में क़्वाटम जम्प ले सकते है।
वास्तव में यह अंतर्ज्ञान ,इंटुटिव ज्ञान ध्यान-योग-,मेडिटेशन से विकसित होता है। इसमे ज्ञान-योग-धारणा-सेवा का बहुत महत्व है।
दुनिया की चाल बहुत तेज है और हम बहुत धीमी गति से चलते है । धीमी चाल के कारण हम दुनिया की चाल से बहुत पीछे रह जाते है। इसके परिणाम स्वरूप फ्रस्ट्रेशन का शिकार हो जाते है। लेकिन अंतर्ज्ञान ,इंटुटिव ज्ञान का सहारा लेकर हम क़्वाटम जम्प लेकर हम जगह नम्बर वन की पोजिशन लेते रहते है।
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