ऋषिकेश,(Amit kumar):परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के अवसर पर भारत की गौरवशाली परम्पराओं, विरासत के साथ पृथ्वी, पर्यावरण और जलस्रोत्रों के संरक्षण का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि गौरवशाली विरासत के साथ श्रेष्ठ संस्कारों का संरक्षण भी नितांत आवश्यक है। जिस प्रकार हम संग्रहालयों में अपने पूर्वजों की यादों को संजोकर रखते है उसी प्रकार पूर्वजों के दिये संस्कारों को अपने जीवन में और अपने परिवार में संजोेेकर रखे।
स्वामी जी ने कहा कि अपने बच्चों को संग्रहालय में रही वस्तुओं के माध्यम से भारत के इतिहास और संस्कृति से जोड़ा जा सकता है।
समाज में संग्रहालय की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 18 मई को अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाया जाता है। 1977 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ म्यूजियम (प्लेटिनम) ने अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस बनाया। यह संगठन हर साल वस्तुओं के संग्रहालय के विषय में उचित सुझाव देता है जिसमें वैश्वीकरण, सांस्कृतिक और पर्यावरण की देखभाल को भी शामिल किया गया है।
इसका यह भी एक उद्देश्य है कि लोग संग्रहालयों के माध्यम से अपने इतिहास और अपनी प्राचीन, समृद्ध और गौरवशाली परंपराओं और विरासत को जाने और समझे। साथ ही इसमें अपने पूर्वजों की यादों को संजोकर रखा जाता है।
अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद के अनुसार ” संग्रहालय में ऐसी अनेक चीजें सुरक्षित रखी जाती हैं जो मानव सभ्यता की याद दिलाती है संग्रहालय में रखी वस्तु हमारी सांस्कृतिक धरोहर तथा प्रकृति को प्रदर्शित करती है”
संग्रहालयों में हमारे पूर्वजों की अनमोल यादों को संजोकर रखा जाता है। किताबें, पाण्डुलिपियाँ, रत्न, चित्र, शिलाचित्र और अन्य सामानों के रूप में तमाम तरह की वस्तुएं संग्रहालयों में हमारे पूर्वजों की यादों को ज़िंदा रखे हुई हैं। हर देश की संस्कृति को समझने के लिये इन वस्तुओं का विशेष योगदान होता हैं, जिन्हें संग्रहालयों में सुरक्षित रखा जाता है।
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