window.dataLayer = window.dataLayer || []; function gtag(){dataLayer.push(arguments);} gtag('js', new Date()); gtag('config', 'UA-96526631-1'); कोविड-19 के प्रभावों के सम्बन्ध में एक वेबनार का आयोजन | T-Bharat
September 24, 2024

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कोविड-19 के प्रभावों के सम्बन्ध में एक वेबनार का आयोजन

Uttarakhand,(Amit kumar): जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के डिजास्टर मैनेजमेंट सेन्टर एवं स्कूल आफ इन्वायरमेंट साइंसेज ने हिमालयन पर्यावरण पर कोविड-19 के प्रभावों के सम्बन्ध में एक वेबनार का आयोजन किया, क्योंकि कोविड-19 की वजह से समस्त शैक्षिक एवं शोध कार्य प्रभावित हुए है। इस बात को लेकर जे.एन.यू. के एस.डी.आर. सैल ने हिमालय पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों पर एक पैनल डिक्शन किया। इस परिचर्चा में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्रो0 बी0डी0 जोशी, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जन्तु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग प्रो0 पी0सी0 जोशी, कुमाऊँ विश्वविद्याय के प्रो0 पी0सी0 तिवारी एवं भारत मौसम विभाग के डा0 आनन्द शर्मा ने हिमालयी पर्वतों पर कोविड-19 के समय में पड़ने वाले प्रभावों का आकलन किया। जे0एन0यू0 के प्रो0 पी0के0 जोशी ने इस सम्पूर्ण कार्यक्रम का आयोजन किया।
इस अवसर पर बोलते हुए प्रो0 बी0डी0 जोशी ने गंगा नदी पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावो पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में जब सम्पूर्ण देश में लाकडाउन की स्थिति है तो इसका प्रभाव गंगा के पानी में गंगा का जल इतना शुद्ध व पारदर्शी दिखाई दे रहा है, इतना विगत कई वर्षो में नहीं दिखायी दिया। इन दिनों गंगा के प्रदूषण को प्रदर्शित करने वाले विभिन्न कारण अपने निम्न स्तर पर है। वहीं प्रो0 पी0सी0 तिवारी ने कहा कि जो अप्रवासी वापिस आ रहे है उनके बारे में सावधानी बरते जाने एवं उनको पर्वतीय क्षेत्रों में रोकने हेतु कृषि को प्रधान बनाये जाने पर बल दिया।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के जन्तु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग प्रो0 पी0सी0 जोशी हिमालयी क्षेत्र के हरित पर्यावरण बनाये रखे जाने एवं यहां की वन सम्पदा को सुरक्षित रखे जाने के बारे में अपने विचार व्यक्त किये। मौसम विभाग के वैज्ञानिक डा0 आनन्द शर्मा ने पर्यावरण परिवर्तन जलवायु परिवर्तन एवं इसके द्वारा हिमालयी क्षेत्रों में पड़ने वाले प्रभाव पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि इस समय में जो परिवर्तन दिखायी दे रहा है। यह परिवर्तन दीर्घकालीन परिवर्तन नहीं है। इस वेबनार में लगभग 42 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया और हिमालयी क्षेत्र के संवेदनशील पर्यावरण को बचाये रखने की आवश्यकता पर बल दिया। विशेषज्ञों ने यह भी माना कि सरकारों को ऐसे संवेदनशील प्रभावी क्षेत्रों में धार्मिक यात्राओं पर आने वाले लोगों की संख्या पर नियंत्रण के बारे में भी सोचना चाहिए।

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