window.dataLayer = window.dataLayer || []; function gtag(){dataLayer.push(arguments);} gtag('js', new Date()); gtag('config', 'UA-96526631-1'); खतरा : दून में भी हो सकता है दिल्ली जैसा हादसा | T-Bharat
September 23, 2024

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खतरा : दून में भी हो सकता है दिल्ली जैसा हादसा

दून अस्पताल में अग्निसुरक्षा के इंतजाम नाकाफी हैं। यहां पर अग्निशमन यंत्र तो लगवा दिये गये हैं, लेकिन राजकीय निर्माण निगम की ओर से पानी का टैंक नहीं बनवाया गया है। ऊंचाई की जगहों पर पानी पहुंचाने को पाइपों का जाल तो बिछाया, लेकिन टैंक नहीं बनने से यह सिस्टम किसी काम का नहीं है। 
अस्पताल में कई जगहों से पाइप और नोजल गायब हैं। ऐसे में अनहोनी की स्थिति में आग पर काबू कैसे पाया जाएगा, यह बड़ा सवाल है। रविवार को ‘हिन्दुस्तान’ पड़ताल में सामने आया कि अग्नि सुरक्षा व्यवस्था को ऊंची इमारतों में इस्तेमाल होने वाला डाउन कॉमर सिस्टम लगाया है। लेकिन इस सिस्टम के बक्सों से फायर हॉज पाइप ही गायब है। ऐसा एक दो बक्सों में नहीं बल्कि पूरे नौ से दस बक्सों में है। कई जगह तो इन बक्सों को साफ-सफाई का कपड़ा रखने के काम में लाया जा रहा है। वहीं सिस्टम की पाइप लाइन में कई जगह नोजल भी गायब मिली। 

राजकीय निर्माण निगम को कई बार लिखा गया है, लेकिन टैंक नहीं बनवाया गया। अस्पताल में 29 अग्निशमन यंत्र नये लगवाए गये थे। अब कुल 54 यंत्र हो गये हैं। वैसे तो अस्पताल में आग से निपटने के पर्याप्त इंतजाम हैं, लेकिन टैंक बनना जरूरी है। 
डा. केके टम्टा, एमएस, दून अस्पताल  


देहरादून में फायर सेफ्टी के नाम पर सिर्फ नोटिसबाजी 
अग्नि सुरक्षा के मानक पूरे किए गए बगैर दून में व्यावसायिक गतिविधियां चल रही हैं। रिहायशी इलाकों में इस तरह की गतिविधियां और भी खतरनाक हैं। यहां अग्निशमन विभाग की भूमिका ऐसे संस्थानों को नोटिस जारी करने तक सीमित रहती है, क्योंकि इन मामलों में उसके पास कानूनी अधिकार तक नहीं है। यही वजह है कि कई संस्थान एक बार फायर एनओसी लेने के बाद उसका नवीनीकरण भी नहीं करते। देश में जब कभी बड़े अग्निकांड होते हैं, तो देहरादून में भी फायर सेफ्टी के नाम पर औपचारिकताएं होती हैं। दिल्ली में शनिवार के अग्निकांड के बाद फिर से फाइलें पलटाई जाने लगी हैं। इससे पहले पिछले साल मई में सूरत के कोचिंग इंस्टीट्यूट में हुए अग्निकांड के दून के तमाम कोचिंग संस्थानों को खंगाला गया था, जिनमें 80 फीसदी के पास फायर की एनओसी तक नहीं पाई गई। इससे पहले कोलकाता के अस्पताल में हुए अग्निकांड के बाद देहरादून के अस्पतालों की कुंडली खंगाली गई थी, तब भी यही हकीकत सामने आई थी। पिछले साल जून में एक यूनिवर्सिटी, कई कोचिंग संस्थानों के साथ ही करीब 150 प्रतिष्ठानों को फायर की एनओसी लेने के लिए नोटिस जारी किया गया था। अग्निशमन विभाग के इस नोटिस के बाद इनमें से आधे संस्थान ही अग्निशमन विभाग में एनओसी के लिए पहुंचे। जबकि, अन्य नोटिस को दबाकर बैठ गए हैं। इन्हें रिमांइडर भी जारी किए गए। रिमांइडर के आगे कार्रवाई का अधिकार अग्निशमन विभाग के पास नहीं है। ऐसे में अग्निशमन विभाग इनके खिलाफ कानूनी या सीलिंग की कार्रवाई नहीं कर पाया। जबकि, नोटिस के बाद भी कई संस्थान अभी भी संचालित हो रहे हैं।


अग्निशमन विभाग सुरक्षा को लेकर नियमित अभियान चला रहा है। जो संस्थान अग्निशमन सुरक्षा मानक पूरे नहीं करता, उन्हें नोटिस जारी किए जाते हैं। चालान, सीलिंग या मुकदमें जैसी कार्रवाई का अधिकार अग्निशमन विभाग को नहीं है। इसके लिए शासन स्तर पर नया एक्ट तैयार किया जा रहा है। 
अर्जुन सिंह रांगड़, अग्निशमन अधिकारी, देहरादून

संकरी गलियों में ऊंची इमारतें, इंतजाम जीरो
राजधानी देहरादून के कई इलाकों में संकरी गलियों में मानकों के विपरीत ऊंची इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। इन इमारतों में कई-कई प्रतिष्ठान संचालित हो रहे हैं, लेकिन आग लगने पर बचाव तक के उपकरण नहीं हैं। मानकों का भी पालन नहीं हो रहा है। अग्निशमन विभाग इन्हें कई बार नोटिस भी भेज चुका है, लेकिन अमल नहीं होता।  शहर के घोसी गली, करनपुर, मोती बाजार, खुड़बुड़ा, इनामुल्ला बिल्डिंग समेत कई  इलाकों में संकरी गलियां हैं। यहां पर कई इमारतें ऐसी हैं, जहां पर कई कॉमर्शियल प्रतिष्ठान खुले हैं। इनमें शिक्षण संस्थान, होटल, रेस्टोरेंट आदि शामिल हैं। दिल्ली हादसे के बाद फिर से सवाल खड़े होने लगे हैं कि यहां ऐसा हादसा हुआ तो इन संकरी गलियों में कैसे बचाव हो पाएगा। क्योंकि ज्यादातर प्रतिष्ठानों में जरूरी उपकरण एवं अलार्म सिस्टम तक नहीं लगा हैं।

शहर के बीच में है इंडस्ट्रीयल एरिया
पटेलनगर इंडस्ट्रीयल एरिया एक जमाने में शहर के बाहर हुआ करता था। अब यह शहर के बीच आ गया है। उद्योग कार्यालय के नजदीक स्थित इस इलाके में कई फैक्ट्री संचालित होती हैं। यहां पूर्व में एक पेंट गोदाम में भीषण आग लगी थी। हालांकि, इसमें कोई जनहानि नहीं हुई थी। यह क्षेत्र अब काफी संवेदनशील बन गया है।

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