चंडीगढ़,। पंजाब के पूर्व कैबिनेट मंत्री और कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर पंजाब की राजनीति फिर गर्मा गई है। कैप्टन अमरिंदर सिंह कैबिनेट से इस्तीफा देने के बाद शांत बैठे सिद्धू को लेकर अचानक अटकलबाजियों व चर्चाओं से राज्य में सियासी हलचल बढ़ गई। उनके भाजपा में शामिल होने की तैयारी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह व शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल के साथ मीटिंग की चर्चाएं बुधवार को दिन भर सोशल मीडिया में चलती रहीं। इससे कांग्रेस के नेता भी पसोपेश में नजर आई।
गौरतलब है कि नवजोत सिंह सिद्धू पिछले करीब छह माह से अपने अमृतसर स्थित घर तक ही सीमित हैं। अब इन कयासबाजियों से वह एक बार फिर से चर्चा में आ गए हैं। कयासबाजी चल रही है कि नवजोत सिद्धू ने अमित शाह से मुलाकात की है। हालांकि, इस कथित मीटिंग की न तो भाजपा ने पुष्टि की और न ही नवजोत सिंह सिद्धू ने अपना रुख साफ किया।
भाजपा ने नहीं की पुष्टि, सिद्धू ने भी नहीं स्पष्ट किया रुख; शिअद ने बताया अफवाह
इस मीटिंग में सुखबीर बादल के भी होने की भी चर्चाएं चल रही हैं। शिरोमणि अकाली दल नेताओं इसे अफवाह बताया है। पार्टी के एक सीनियर नेता ने बताया कि यह केवल उसी सूरत में हो सकता है, जब भाजपा यह तय कर ले कि वह शिअद के साथ अब आगे और नहीं चलेगी, क्योंकि नवजोत सिंह सिद्धू मात्र 23 सीटों के लिए भाजपा में शामिल नहीं होंगे। बता दें कि नवजाेत सिद्धू व शिअद के प्रधान सुखबीर बादल के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। सिद्धू के भाजपा छोड़ने का बड़ा कारण भी यही रहा है।
ज्यादा सीटों का दबाव बना रही भाजपा
पंजाब में 117 सीटों पर शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी में गठबंधन है। इसमें से भारतीय जनता पार्टी मात्र 23 सीटों पर चुनाव लड़ती है। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से ही भाजपा ने अकाली दल पर ज्यादा सीटें लेने को लेकर दबाव बनाया हुआ है। पार्टी की राज्य इकाई भी चाहती है कि भाजपा अब शिअद से अलग होकर चुनाव में उतरे और हरियाणा व महाराष्ट्र की तरह अपने तौर पर राज्य में सरकार बनाए।
बताया जाता है कि पार्टी को एक ऐसे जट सिख चेहरे की तलाश है, जो पार्टी की राज्य में अगुवाई कर सके। पार्टी के पास सिद्धू ऐसा ही चेहरा थे, लेकिन उनकी अकाली दल के नेता सुखबीर बादल व बिक्रम मजीठिया से न बनने के कारण वह भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 77 सीटों पर कब्जा करने में कामयाब हो गई, लेकिन नवजोत सिद्धू सरकार में ज्यादा समय तक नहीं टिक सके।
सिद्धू के सिर फूटा था बठिंडा में हार का ठीकरा
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की देशभर में हार के कारण नवजोत सिद्धू की स्थिति और भी कमजोर हो गई। बठिंडा में हार का ठीकरा भी उनके सिर फूटा। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उनसे स्थानीय निकाय जैसा विभाग लेकर बिजली विभाग दे दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया और वह मंत्री पद से इस्तीफा देकर अपने घर बैठ गए।
सिद्धू ने पिछले छह महीनों से किसी भी मीडिया कर्मी से बात नहीं की है। बीच-बीच में उनकी आरएसएस के सीनियर नेताओं के साथ मीटिंग की खबरें आती रही हैं। इसी कारण जब अमित शाह के साथ मीटिंग की खबर आई तो इसे संघ के नेताओं के साथ उन्हीं मीटिंग के साथ जोड़कर देखा जा रहा है। नवजोत सिद्धू अगर भाजपा में वापसी करते हैं, तो यह पंजाब की राजनीति में एक बड़ी हलचल होगी।
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