पाकिस्तान भले ही खुद को कश्मीरियों का हमदर्द दिखाने के लिए कोई भी नाटक करे, लेकिन कश्मीरी अवाम अब उसके मकड़जाल से बाहर निकलता दिख रहा है। ऐसे में वादी के लोग अब खुलकर पाकिस्तान को इन हालातों के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वहीं, विशेष दर्जे की आड़ में कश्मीर केंद्रित दलों ने घाटी को अपनी सल्तनत बनाकर रखा था। अगर ऐसा न होता तो न यहां अलगाववाद होता और न ही केंद्र को कड़े कदम उठाने पड़ते।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में नई बहस छिड़ गई है। ऐसे में लोग अब राज्य के मौजूदा हालात और अपने भविष्य पर चर्चा करते हुए पाकिस्तान, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी को तराजू के एक ही पलड़े में रख रहे हैं। टीवी चैनलों की बहस में अलगाववादी खेमे का प्रतिनिधित्व करने वाले एक युवा वकील ने कहा कि पांच अगस्त से लेकर आज तक कश्मीर में जो हुआ, उससे साफ है कि हमें दिल्ली से नहीं पाकिस्तान से दूर रहने की जरूरत है।
सारी दुनिया ने भारत को सही बताया
एक अधखुले रेस्तरां में बैठे कश्मीर की सिविल सोसाइटी के कुछ जाने माने चेहरों में शामिल एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि अब हमें आगे देखना चाहिए। 70 सालों तक हम पाकिस्तान को अपना हितैषी मानते रहे, लेकिन उसने कभी भी कश्मीर को लेकर अपनी संकल्पबद्धता साबित नहीं की है।
आज दुनिया के सभी देश भारत को सही ठहरा रहे हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान कह रहे हैं कि वह कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि अब उन्हें डर है कि गुलाम कश्मीर में भी भारत का कब्जा हो जाएगा। हमें हकीकत को समझना चाहिए कि यह बदलाव हमारी बेहतरी के लिए हुआ है।
पाक से आई बंदूकों ने बनाए कब्रिस्तान
कश्मीर की चुनावी सियासत में भाग्य आजमा चुके सलीम मलिक ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमें सोचना चाहिए कि हम ऐसा क्या करें। जिससे यहां अमन और तरक्की का माहौल बने। हमें इस्लामाबाद को छोड़ दिल्ली की तरफ देखना चाहिए। इस्लामाबाद से कुछ नहीं मिलने वाला। कारण, कुछ भी रहा हो पाकिस्तान से आई बंदूकों ने न सिर्फ हमारे यहां कब्रिस्तान तैयार किए, बल्कि हमारे भाईचारे की तहजीब को भी नुकसान पहुंचाया है।
पाबंदी हटने पर भी सड़कों पर क्यों नहीं उतरे लोग
एक सियासी दल के वरिष्ठ कार्यकर्ता और पूर्व नौकरशाह ने कहा कि अब वक्त दोष मढ़ने का नहीं। हमें यह देखना चाहिए कि अब हम कश्मीर को कहां लेकर जा सकते हैं। यहां दुकानें बंद हैं, स्कूल बंद हैं, क्या यह लोगों की मर्जी से बंद हैं या डर से। यह समझा जाए। अगर लोगों की मर्जी से बंद होती तो क्यों नहीं पूरा कश्मीर पाबंदियों में राहत मिलने पर भी सड़कों पर नारा नहीं लगा रहा। क्यों लोग यहां मुख्यधारा की राजनीति करने वालों की हिरासत पर खुश हैं।
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